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________________ १३१ चरणो मे बैठकर आनन्द के अथाह प्रम्बुनिधि मे डूबता उतराता था । आचार्यश्री जहा भी जाते है वहा स्वय ही एक भीड इकट्ठी हो जाती है । यात्री लोग तो साथ रहते ही है पर स्थानीय व्यक्तियो को उत्कठा भी कम नही रहती । स्वत. ही एक सभा जुड़ गई। मुनिश्री नेमीचन्दजी ने ग्रामवासियो को अगुव्रत का संदेश दिया । तदनन्तर कुछ क्षरणो के लिए स्वयं आचार्यश्री भी सभा मे पधारे। बातचीत के बीच ग्राचार्यश्री ने चौ० पृथ्वीसिंह सरपंच ग्राम पंचायत से पूछा- क्यों सरपंच साहब 1 आपने सतो का स्वागत किया ? चौधरी कुछ हिचकिचाया और सोचसस्पष्ट शब्दो मे वोला- हां, मै कुछ दूर स्वागत करने के लिए सामने गया था। रुपये पैसे और भूमि तो आप लेते नही तव उससे बढ़कर मैं धीर कर ही क्या सकता था । आचार्यश्री- - आप अपनी सबसे प्यारी चीज भेंट कर सकते थे । चौधरी को असमजस मे पडा देखकर प्राचार्यश्री कहने लगे-सतो का स्वागत तो अपने जीवन को उन्नत बनाने से ही हो सकता है । जीवन मे यदि कोई बुराई या व्यसन हो तो उसे छोड देना ही सतो का सच्चा स्वागत है । क्या आपके यहा मद्य का प्रचलन है ? चौधरी - हा, यहा मद्य खूब चलता है और मैं स्वय भी मद्य. पीता हू । आचार्यश्री - क्या उसे छोड सकते हो ? चौघरी - सभव नही है । कहना सहज होता है पर जीवन भर प्रतिज्ञा का पालन करना दुष्कर होता है । हम लोग नेताओ के सामने बहुधा बुराइया छोडने के सकल्प किया करते हैं, हाथ उठा उठाकर प्रतिज्ञाए भी लेते है पर उनका पालन नही करते। क्योकि वहा प्रवाह होता है जीवन पर प्रभाव नही ।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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