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________________ ५-२-६० चूकि इस महोत्सव पर अधिकतर पजाबी लोग ही एकत्र हुए थे। अत' इन दिनो मे विशेष रूप से आचार्यश्री के चारो ओर उनका ही घेरा रहता था। घेरा भी ऐसा कि एक बार तो साधुओ को भी आचार्यश्री तक पहुचने का रास्ता न मिले । पंजाब और हरियाणे के सुडोल और सुगठित लोगो मे जिनकी विनती भी कडाई से होती है। इस बार के महोत्सव का दुर्लभ आकर्षण था । यद्यपि हरियाणे के लोग ज्यादा स्वच्छ रहने के अभ्यासी नही है पर आचार्यश्री के प्रति उनकी जो आस्था है वह उनके हृदय से निकलकर स्वय ही शब्दो मे छलक पडती थी। आचार्यश्री स्थान-स्थान के भाई-बहनो का परिचय प्राप्त कर रहे थे। इसी क्रम मे एक भारी भरकम भाई ने आचार्यश्री को अपना परिचय देते हुए कहा--आचार्यवर | आपके उपदेश नि सन्देह ही हम लोगो के लिए लाभप्रद साबित हुए है । मैं तो विशेष रूप से यह कह सकता हूं कि आपके शिष्यो के उपदेशो से भी मेरा बहुत कल्याण हुआ है । पहले मेरा वजन चार मन था। पर आपके अन्तेवासी मुनिश्री डूगरमलजी के उपदेश से मैंने आठ महिनो तक एकान्तर तप किया। जिसके परिणाम स्वरूप मेरा एक मन आठ सेर वजन घट गया। पहले मुझे उठने बैठने तथा चलने । फिरने मे बडी तकलीफ होती थी पर अब मुझे कोई कठिनाई अनुभव नहीं होती। अब मैं थोडा बहुत दौड भी सकता है। सचमुच आपके उपदेशो से आत्म-सुधार तो होता ही है, पर शरीर-सुधार भी कम नहीं होता। इसी प्रकार अनेक लोगो ने अपने-अपने अनुभव सुनाए और
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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