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________________ . भक्तामर स्तोत्र ॥ .. ४९ मत्तद्रिमगराजदवानलाहि संग्रामवारिधिमहोदरबंधनोत्थम् । तस्याशनाशमुपयातिभयं भियेव, यस्तावक स्तवमिममति मानधीत ॥४७॥ मस-मस्त । द्विपेन्द्र (गजराज) = बडे-हाथी। = मृगराज शोर । दवानल - धनकी आग। महिलांपा. संग्राम युद्ध (लड़ाई) ! पारिधि समुद्र । महोदर - जलोदर के समान पेट का रोग। बंधन बांधा जाना। उत्थं उठा तिस्थ उसका। भाशु-जल्दी नाश-नष्टं। उपयाति हो जाता है। मयं खौफ। मियां डर. खेवतरह । यः जो; तावक - तुम्हारा स्तव-स्तोत्र। इ स मंतिमान में बुद्धमानमधीते : पढ़ता है :.::...: :: .. . . . . मन्वयार्थ जो बुद्धिमान आपके इस स्तोत्र को पढता है-उस का मस्त हाथी' शेर, घनकी भाग, सांप, युद्ध, समुद्र, जलोदर, बंधन, इनले पैदा होने वाला मय: शीघ्र ही उसले डरता हुआ नष्ट हो जाता है । :- .......... ... . : भावार्थ, यहाँ आचार्य कहे हैं कि है. भगर्दैन् अपरके छन्दों में वर्णन करे जो मस्त हाथी, शेर, बन की माग साप युद्ध समुद् जलोदर रोग बंधन आदि भष्ट प्रकार के महा संकर जो बुद्धिमान आप के भक्त विपदा के लमय आपका यह स्तोत्र, पढ़ें उन की हर प्रकार की मुसीबतें डर कर एक क्षण मात्र में नष्ट हो जाती हैं : अर्थात् उनको फैसी ही विपदा पेश क्यों न ओजाधे यदि वह मुसीवेत के चकत औपके : इस स्तोत्र का पाठ, करें तो उनकी सर्व तकलीफात फौरन दूर हो वह अमन चैन हासिल करते है। ... महामत्त गजराज, और मृगराज दवानल। - फणपति रण परचंड नौरनिधि रोगमहाबल। बन्धन में भयं आठ, डरप कर मानोनाशे । :तुमसुमरत छिन माहि, अभय थानक परकाशें । इल अपार संसारमें शरण नाहिं प्रभ कोय। याते तुम पद भक्त को भक्ति सहाई होय ॥ ४७.॥ . .. .. .
SR No.010634
Book TitleBhaktamar Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Jaini
PublisherDigambar Jain Dharm Pustakalay
Publication Year1912
Total Pages53
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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