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________________ با ایتالیایی داستان نبایدهای ایمانی | अनेक अवस्थाओंको लिये हुए संसारका जितना भी प्राणिवर्ग है वह सब उसी कर्ममलका परिणाम है-उसीके भेदसे यह संब जीव-जगत् । भेदरूप है। और जीवकी इस अवस्थाको 'विभाव-परिणति' कहते हैं। जबतक किसी 8 जीवकी यह विभाव-परिणति बनी रहती है, तब । . तक वह 'संसारी' कहलाता है और तभी तक उसे संसारमें कर्मानुसार नाना प्रकारके । o रूप धारण करके परिभ्रमण करना तथा दु:खं ! in उठाना होता है। जब योग्य साधनोंके बलपर! | यह विभाव-परिणति मिट जाती है-आत्मामें । कर्म-मलका सम्बन्ध नहीं रहता-और उसका । निज स्वभाव सर्वाङ्गरूपसे अथवा पूर्णतया ४ विकसित हो जाता है, तब वह जीवात्मा संसारU परिभ्रमणसे छूटकर मुक्तिको प्राप्त हो जाता है । और मुक्त, सिद्ध अथवा परमात्मा कहलाता है, ।। appendevsnaseDabalinaccCEDDIDDCPECIPES
SR No.010633
Book TitleSiddhi Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1936
Total Pages49
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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