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________________ meron nnanor .. morn... .. ....... योजना की गई है। ये पाठ संस्कृत और प्राकृत दोनों मुख्य तथा प्राचीन भाषाओंमें पाये जाते 0 हैं और अर्हत्, सिद्ध, आचार्य, योगीन्द्र, चैत्यादि । भक्तियों के भेदसे अनेक भेदको लिये हुए हैं। । इनसे कितने ही पाठ बहुत अधिक प्राचीन समयके हैं। उस समय ये भक्ति-पाठ ही हमारे पूजा-पाठ थे, ऐसा उपासना-साहित्यके अनुस. न्धानसे जाना जाता है । आधुनिक पूजा-पाठों की तरहके कोई भी दूसरे पूजा-पाठ उस समl यके उपलब्ध नहीं हैं। उस समय मुमुक्षुजन M एकान्त स्थानमें बैठकर . अथवा महत्प्रतिमा 0 आदिके सामने स्थित हो र बड़े ही भक्ति-भावके 0 साथ विचारपूर्वक जब इन पाठोंको पढ़ते थे, तो वे ए अपने वचन और कायको अन्य व्यापारीसे हटाकर एउपास्यके प्रति-हाथ जोड़ने, शिरोनति करने, १ स्तुति पढ़ने आदि द्वारा--एकाग्र करते थे, यही उनकी द्रव्य-पूजा' थी; और मनकी नाना SSSSSSSSSSSSSSSSS
SR No.010633
Book TitleSiddhi Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1936
Total Pages49
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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