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________________ ७० भी जीतनेवाले मेरे रथ मुझे प्रमुदित करेंगे । इन्द्रके ऐरावत हाथीके माहात्म्यको भी नष्ट करनेवाले मेरे श्रेष्ठ हाथियोंकी श्रेणी मुझे हर्पित करेगी। सुरेन्द्र के घोड़ोंको नीचा दिखानेवाले करोड़ों घोड़े मुझे संतोषित करेंगे । मेरे आगे २ दौड़ेनेवाले, मुझपर प्रेम करनेवाले, दूसरोंको दूर करनेमें चतुर, परस्पर एक चित्तवाले और एक दूसरेसे अतिशय सटे हुए असंख्य पैदल सिपाही मेरे हृदयको उल्लासयुक्त करेंगे। नमस्कार करनेमें अनुराग रखनेवाले अनेक राजा अपनी मुकुटमणियोंकी किरणोंसे मेरे चरण कमलोंको प्रतिदिन रंजित करेंगे । मैं बहुत बड़ी पृथ्वीका मांडलिक राजा होऊंगा और वृहस्पतिकी बुद्धिका भी तिरस्कार करनेवाले मेरे बड़े २ मंत्री राज्यके सारे कार्योंको चलावेंगे।" ये सब मनोरथ भिखारीकी अच्छी भिक्षा मिलनेकी इच्छाके तुल्यसमझना चाहिये । और भी यह जीव विचार करता है कि, "जब मैं अतिशय समृद्धिशाली और निश्चिन्त हो जाऊंगा और इसलिये जत्र सब प्रकारकी सामग्री मेरे पास हो जायगी, तब विधिपूर्वक 'कुटीप्रावेशिक" रसायन सिद्ध करूंगा। उसके सेवन करनेसे मैं सिकुड़नवालोकी सफेदी, गंजापन, अंगहीनता आदि दोषोंसे रहित, जरामरणरूप विकारोंसे मुक्त, देवकुमारोंसे भी अधिक कान्तिवाला, सम्पूर्ण विषयोंके भोगनेमें समर्थ और बलवान् शरीर प्राप्त करूंगा।" यह सब पाई हुई भिक्षाको एकान्त स्थानमें ले जानके मनोरथके समान समझना चाहिये। ___ और भी विचार करता है कि,-"इस प्रकारका शरीर प्राप्त होनेपर मैं अपने मनमें बहुत ही प्रसन्न होऊंगा और गहरे प्रेमसमुद्रमें डूबकर उन मनोहर स्त्रियोंके साथमें इस प्रकार क्रीडा करूंगा,-कभी १ कोई इस प्रकारकी रसायन जिसके कारण नारोगी सुन्दर शरीर प्राप्त हो।
SR No.010630
Book TitleUpmiti Bhav Prapanch Katha Prastav 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherNathuram Premi
Publication Year1911
Total Pages215
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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