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________________ ग्रन्थमें जो धर्मवोधकर नामका पात्र है, उसे श्रीहरिभद्रसूरिको लक्ष्य करके और जो निप्पुण्यक दरिद्री है, उसे अपने आपको लक्ष्य करके बनाया है। वल्कि इस पहिले प्रस्तावको यदि हम श्रीसिद्धर्पिकी आध्यात्मिक जीवनी कहैं, तो कुछ अत्युक्ति नहीं होगी।आपने जगह २ संसारी जीवको जो "सोऽयं मदीयो जीवः" कह कर उल्लेख किया है, उससे यह वात दृढ़तापूर्वक कहीं जा सकती है। ___महात्मा सिद्धर्पिका चरित्र कैसा था, इसके जाननेके लिये किसी ऐतिहासिक ग्रन्थके खोजनेकी आवश्यकता नहीं है। इस ग्रन्थका प्रत्येक शब्द और प्रत्येक पद उनके जीवनचरित्रको प्रगट कर रहा है। वे बड़े ही निराभिमानी, उदार, शान्त, कोमल, नम्र और अन्तर्दृष्टा होंगे। जीवमात्रका उपकार करनेकी प्रबल वासना जैसी उनके उदारहृदयमें जागृत रही है, वैसी उस समय शायद ही किसी विद्वानके हृदयमें रही होगी । मनुप्यके भावोंका सजीव चित्र खींचनेमें और कविताको माधुर्य प्रसादादिगुणोंसे भूपित करनेमें वे सिद्धहस्त थे । उन्होंने जो कविता की है, वह अपना पांडित्य प्रकट करनेके लिये नहीं किन्तु लोगोंका उपकार करनेके लिये की है। इसी कारण उनकी कविता उत्कृष्ट कान्यके गुणोंसे युक्त होनेपर मी सरल, श्लेष और उपमालंकारसे वेष्टित होनेपर भी कोमल तथा सुबोध्य, अध्यात्मका निरूपण करनेवाली होनेपर भी सरस और सुखद हुई है। ऐसी अच्छी कविताशक्ति पाकर भी उन्होंने उसका उपयोग केवल जीवोंको संसारसमुद्रके पार करनेके लिये किया, इससे पाठक समझ सकते हैं कि, वे किस श्रेणीके महात्मा थे। महात्मा सिद्धर्षि श्वेताम्बरसम्प्रदायके अनुयायी थे । इससे संभव
SR No.010630
Book TitleUpmiti Bhav Prapanch Katha Prastav 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherNathuram Premi
Publication Year1911
Total Pages215
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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