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________________ मार्गका उपदेश करते हैं, ऐसे आचार्य महारानने मेरे जीवपर पड़ती हुई परमेश्वरकी दृष्टि देखी; ऐसा समझना चाहिये । विशेष इस प्रकार है कि जिनका आत्मा शुभध्यानके वलसे निर्मल हो गया है और जो दूसरोंका हित करनेमें सदा दत्तचित्त रहते हैं, वे ज्ञानवान योगी देशान्तर और कालान्तरके प्राणियोंकी भी भगवानकी दृष्टि पड़नेकी योग्यताको जान सकते हैं । जो महात्मा छदमस्थ अवस्थामें वर्तमान हैं अर्थात् अपूर्णश्रुतज्ञानी हैं, तथा जिनकी बुद्धि भगवानके आगमोंसे मँनी हुई है,वे भी जव उपयोग लगाकर अपने समीपके प्राणियोंकी योग्यता (भगवानकी दृष्टि पड़नेकी ) को जान जाते हैं, तत्र विशेष ज्ञानियोंकी अर्थात् सम्पूर्णश्रुतज्ञानियोंकी तो बात ही क्या कहना ? और ज़िन आचार्य महाराजने मुझे सदुपदेश दिया है, वे विशेषज्ञानी ही थे । क्योंकि उन्होंने मेरा आगामी कालमें होनेवाला भी सारा वृत्तांत जान लिया था। यह मेरी स्वानुभवसिद्ध वार्ता है। ___ पश्चात् धर्मबोधकर मंत्री विस्मित होकर विचारने लगा कि:" अहो ! मैं यह क्या आश्चर्य देख रहा हूं ? क्योंकि ये सुस्थित महाराज जिसपर दृष्टि डालते हैं, वह पुरुष तत्काल ही तीनों भुवनका राजा हो जाता है । यह बात भलीभांति प्रसिद्ध है। परंतु इस समय जो महाराजकी दृष्टिमें आ रहा है, वह तो भिखारी है, दीनताका मारा हुआ है, रोगी है, दरिद्रताका पात्र है, मोहका हता हुआ है, अतिशय घिनौना है, और संसारसे भयभीत करनेका एक कारण है। तब यह बात पूर्वापर विचार करनेसे भी ठीक २ नहीं- मँचती है कि, इस सारे दोषोंसे युक्त भिखारीपर परमेश्वरकी दृष्टि क्यों पड़ी ? क्योंकिः-न कदाचनापि. दीर्घतरदौर्गत्यभाजिनां गेहेषु अन: धैयरत्नदृष्टयो निपतितुमुत्सहन्ते । अर्थात् अमूल्य रत्न अतिशय
SR No.010630
Book TitleUpmiti Bhav Prapanch Katha Prastav 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherNathuram Premi
Publication Year1911
Total Pages215
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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