SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करनेवाला तथा संसारको प्रकाशित करनेवाला है, उसी प्रकारसे सर्वज्ञदेव मोहकी पीड़ाओंको नाश करनेवाले और संसारको ज्योंका त्यों प्रकाशित करनेवाले हैं ॥ १ ॥ जो विशुद्धस्वभावस्वरूप . है अथवा जिसका विशुद्ध धर्म है, जिसने अपने आत्मस्वरूपकी परि. पूर्णताको माप्त कर ली है, और जिसकी मूर्ति सब प्रकारके विकारोंसे परे है, अर्थात् जिसके स्वरूपमें किसी प्रकारका विकार नहीं होता है, उसको (परमात्माको) नमस्कार हो ॥ २ ॥ तीनों लोकोंको दुखी करनेवाले, रागरूपी सिंहका जिन्होंने विदारण कर दिया है और समतारूपी अमृतके पानसे जो सन्तृप्त हो गये हैं, उन महात्मा आदिनाथको नमस्कार हो ॥ ३ ॥ जिन्होंने अपने वैरी द्वेषरूपी बड़े भारी हाथियोंके मस्तकोंको फाड़ डाला है, और जिनकी आत्माएं निर्मल-कर्मकलंकरहित हैं, उन अजितनाथसे लेकर महावीरपर्यन्त तीर्थकर-सिंहोंको नमस्कार हो ॥ ४ ॥ जिसने क्षुधादि अठारह प्रकारके दोषोंको दलन कर डाला है, मिथ्यादर्शनको नष्ट कर दिया है, कामदेवका विनाश कर दिया है और अन्तरंग बहिरंग शत्रु जिसके रहे नहीं हैं, उस वीर भगवान्को नमस्कार हो ॥५॥ अथवा-- अन्तरङ्ग महासैन्यं समस्तजनतापकम् । दलितं लीलया येन केनचित्तं नमाम्यहम् ॥६॥ समस्तवस्तुविस्तारविचारापारगोचरम् । वचो जैनेश्वरं वन्दे सूदिताखिलकल्मषम् ॥७॥ मुखेन्दोरंशुभिर्व्याप्तं या विभर्ति विकस्वरम् । करे पद्ममचिन्त्येन धाम्ना तां नौमि देवताम् ॥ ८ ॥ परोपदेशप्रवणो माशोऽपि प्रजायते । यत्प्रभावान्नमस्तेभ्यः सद्गुरुभ्यो विशेषतः ॥९॥
SR No.010630
Book TitleUpmiti Bhav Prapanch Katha Prastav 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherNathuram Premi
Publication Year1911
Total Pages215
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy