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________________ [५७ ] सकते हैं । परन्तु आदिपुराण से ऐसा कुछ भी मालूम नहीं होता। यहाँ अनेक क्रियाओं का विधान करते हुए 'यथाविमा 'यथाविमचअनापिदि शब्दों का प्रयोग किया गया है और उससे मालूम होता है कि इन क्रियाओं को सत्र लोग अपनी अपनी शक्ति और सम्पति के जानुसार कर सकते हैं धनवानों का ही उनके लिये वोई ठेका नहीं है। () महारवानी ने, निग्न पथ द्वा, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शव चारों जातियों के लिये क्रमशः १२३, १६ , २०. वें, भौर ३२ दिन बालक का नाम रखने की व्यवस्था की है-. । .. द्वादशे पोहरी बिशेवानिशे दिवसेदिया नामफर्म स्वजातीनां कर्तव्य पूर्वमानतः ॥ ११९॥ ' . आपको यह व्यवस्था भी भगवजिनसेन के विरुद्ध है। श्रादिपुराण में जना दिन से १२ दिन के बाद-१३३, १४, आदि किसी भी अनुकूच दिवस में नाम कर्म की सबके लिये सगाग व्यवस्था की गई है और उसमें बाति अथवा वर्णमद को कोई स्थान नहीं दिया गया । यथा: सोनीजी ने इस पंप के अनुवाद में कुछ गलती साई है। इस पच में प्रयुक्त हुए खजातीनां पर और अपि' तथा 'पा' शब्दों का अर्थ ये डीक नहीं समझ सके। स्वजातीना ' पद यहाँ चारों जातियों अर्थात् धणी का धावक है और 'अपि समुधपार्थ में तथा 'बा' शब्द अवधारण अर्थ में गया है विकल्प अर्थ में नहीं। हिन्दुओं के यहाँ भी, जिनका इस ग्रन्थ में पाया अनुतरण किया गया है, 'वर्णक्रम ही नाम कर्म का विधान किया गया है, जैसा "सारसंग्रह' केनिने पाय से प्रकट है जो मु० चिन्तामणि दीपायपधारा का में दिया जा है-' पिकादोजह विमा क्षेत्रियाणां प्रयोदश। • वैश्यानां पोर्ड नाम मांसाले जन्मनः । 1
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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