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________________ में समानिक कारिका'का विमा है और इसका उपराधं उपवीतं सदा पार्य मथुने तूपवीतिवाद' दिया है। भकारकबी में बस उतरार्ध को धारपेद्रामसूत्र तु मैथुने मस्तके तयार केला में बदल दिया है। पान्तु इस सम और परिवर्तन के अवसर पर उन्हें इसका पान नहीं रहा कि यह हग दो विधनों के परस्पर मतभेद में किये हुए बधन को अपना सो को हमें अपने अन्धविरोध को दर करने के लिये कोई ऐसा शब्द प्रयोग साथ में आकर करना चाहिये जिससे ये दोनों विविविधान विजय रूप से समझे कार्य और यह मन ही में 'सया'को जगह पागद देने से हो सकता है ऐसा नही किया, और इससे उनकी साह तथा परिवर्तन सम्बंधी योग्य खाका और भी बना परिचय मिल आता है। अपित्तनमामा मधमा मृतिका मा हितीया तु वतीया तु माया प्रकीर्तिता । ३-५०॥ होने पर कार्य गोषको शी समुः। शोधाचारविहानन्य समन्ता निष्पासा किया ॥२-५४ ॥ এরশালে আৰ কিকি ? सबसव दिवाराधी प्राशा बान विधापनम् । । 'सस्थति के पास है | are दसति के इसरे अभ्यार से ज्यों को बम कर रखा गया है-शव्दव्यम कोश में भी उसे ' द पिका पचन लिखा है। दूसरा पर उक्त सी के पांचवें अध्याय का पब है और उसमें २०२ पर दर्ज है तिरनाकर में भी यह पदक' के नाम से उदात पाया जाता है-उसमें सिद्विजा कीममह 'यही का परिवर्तन किया गया है। पहला पत्र मी पाच पावक मा है और उसो
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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