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________________ [१९] के स्थान पर विद्यन्ते कामदा नित्यम्' यह नवीन पंद जोबा या है और इससे मूलका प्रतिपाय विषय मी कुछ कम होगया है। । (१) श्रीजिनसेनाचार्यप्रणीत भादिपुराण से भी कितने ही पर उठाकर इस मंथ में रक्खे गये हैं, जिनमें से दो पथ नमूने के तौर पर इस प्रकार हैं प्रतचर्यामहं वक्ष्ये क्रियामस्त्रोपविभ्रता। फट्यूब शिरोलिंगमनूचामनतोधितम् ॥ ६-६७ ॥ वनामरयामाल्याविनाधर्ष गुनुलया। शनोपजीविधवद्धारच्छन्नमात्यः -० ॥ इनमें से पहचा पथ तो शादिपुराण के १८३ पर्व का १०९ वाँ पर है-इसके आगे के और भी कई पद्म ऐसे हैं जो ज्यों के त्यों उठाकर रखे गये हैं और दूसरा उसी पर्व के पन नं० १२५ के उत्तरार्ध और नं. १२६ के पूर्वाध को मिलाकर बनाया गया है। प्रथ नं० १२५ का पूर्वार्ध और नं १२६ का उत्तरार्ध क्रमश: इस प्रकार हैं अवविाचनस्यास्य बनायतरणोधितम् ॥ ०.१२५ ॥ खवृधिपरिरक्षार्थ शोमार्थ चास्य सह ॥ ३० १२६ ॥ मालूम नहीं दोनों पक्षों के इन अंशों को क्यों छोड़ा गया और उसमें क्या नाम सोचा गया । इस व्यर्ष की छोड़ छाड़ तथा काट छाँट का ही यह परिणाम है जो यहाँ प्रतावतरण क्रिया के कपन में उस सार्वकातिक प्रत का ,कपन हट गया है जो गादिपुराण के मद्यमांस परित्याग' नामक १२३ में पब में दिया हुआ है। और इसलिये * 'तावतरण चेदं से पहले प्राविपुराण का वह १२३ माँ पद्य इस प्रकार मयमांसपरित्याग पंचोदुम्बरवर्जनम् । दिसाविपिरतिक्षास्पबतं स्यात्साकालिकाम् ॥
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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