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________________ मनावर नं. १ का पय, न०७४ बाळे पयसे पहले नं. १ का पय और नं. ११ केलोकके अनन्तर उसी प्रतिका अन्तिम छोक नं. १६ दिया है। इसी तरह १. सम्बरके पथके अनन्तर उसी प्रतिके १४ और ९५ नम्बरवाले पब कमशः दिये हैं। इस क्रमभेदके सिपाय, दोनों प्रतियों के किसी किसी कोकमें परस्सर कुछ पाठभेद भी उपलब्ध हुआ, परन्तु वह कुछ विशेष महत्व नहीं रखता, इसलिये उसे यहाँपर छोय जाता है। देहलीको इस प्रतिसे संबहकी कोई विशेष निवृत्ति न हो सकी, बल्कि कितने ही अोम उसे और भी ज्यादा पुष्टि मिली और इसलिये प्रन्यकी दूसरी हस्तलिखित प्रतिगोके देखनेकी इच्छा बनी ही रही। कितने ही भंडारोंको देखनेका अवसर मिला और कितनेही मडारोंकी सूचियाँ भी नगरसे गुजरी, परन्तु उनमें मुझे इस 'अन्यका दर्शन नहीं हुवा। अन्तको पिछले साल जब मैं 'बैनसिद्धान्तमवन'का निरीक्षण करनेके लिये मारा गया और वहाँ करीब दो महीनेके ठहरना हुमा, तो उस वक भवनसे मुझे इस प्रन्यकी दो पुरानी प्रतियाँ फनडी अक्षरों में लिखी हुई उपलब्ध हुई-एक ताडपत्रोंपर और बसरी कागजपर। इन प्रतियों के साथ छपी हुई प्रतिका जो मिगच किया गया तो उससे मालूम हुमा किन दोनों प्रतियोम छपी हुई प्रतिके वे श्योक नहीं है जो वेइलीपाली प्रतिमें भी नहीं है, और न वेदस श्योक ही है बो देहली की प्रतिमें छपी हुई प्रतिसे अधिक पाए गये हैं और जिन सवका असर उल्लेख किया जा चुका है। इसके सिवाय, इन प्रतिमि छपी हुई प्रतिके नीचे लिखे हुए पन्द्रह लोक भी नहीं है क्षुधा शुषा भयं वषो पगो मोहश्च चिन्तनम् । अब रजा च मृत्युख स्वेदा खेदो मवोरतिः॥४॥ विस्मयो जननं निदा विषादोऽष्टादश शुषः।। त्रिजगत्सर्वभूतानां दोषार साधारणा इमे ॥५॥ एतेदोषैविनिर्मुको खोऽयमातो निरंजन।' विद्यन्ते येषु वे नित्यं तेऽत्र संसारिणः स्मृता॥६॥ स्वंतत्वपरवषेषु हेयोपावेयनिन्धयः। संशयादिविनिर्मुकास सम्यग्दृष्टिरुच्यते ॥९॥ रकमात्रप्रवाहेण स्त्री निन्या जायते स्फुटम् । विधातुजं पुनासं पवित्रं जायते कथम् ॥ १९॥ अक्षरैन विना शब्दास्तेऽपि ज्ञानप्रकाशकार। . तद्रक्षार्थ व पदस्थाने मौनं श्रीजिनभाषितम् ॥४१॥ दिन्यदेहप्रभावाः सवधातुविवर्जिताः। गोत्पत्तिने तत्रास्ति दिव्यदेवास्ततोमवाः ॥ १७॥
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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