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________________ [१३] इस प्रदर्शन से यह स्पष्ट जाना जाता है कि सोमसेनजी इन किया मंत्रों को ऐसे पार्ष मंत्र नहीं समझते थे जिनके अक्षर अचेतुले अथवा शिने चुने होते हैं और नितमें अक्षरों की कमी वेशी आदि के कारण कितनी ही बिडम्बना होजाया करती है भषवा पों कहिये कि यथेष्ट फल संघटित नहीं होसकता । ये शायद इन मंत्रों को इतना साधारण समझते थे कि अपने जैसों को भी उनके परिवर्तन का अधिकारी मानते थे । यही वजह है बो उन्होंने उक्त दोनों मंत्रों में और इसी तरह और मीबहुत से मंत्रों में अपनी इच्छानुसार तबदीली अथवा न्यूनाधिकता की है, जिस सबको यहां बतलाने की भावश्यकता नहीं है । मंत्रों का मी इस पंप में कुछ ठिकाना नहीं-अनेक देवताओं के पूजा मंत्रों को छोड़कर, नहाने, घोने, कुल्चा दाँतन करने, खाने, पीने, पत्र पहनने, चलने फिरने, उठने बैठने और हगने मूतने मादि बात बात के मंत्र पाये जाते हैं-मंत्रों का एक अनसा नजर आता है और उनकी रचना का ढंग भी प्रायः बहुत कुछ सीधा सादा तथा आसान है। ॐ ही, भाई स्वाहा श्रादि दो चार अक्षर इधर उधर जोड़ कर और कहीं कहीं कुछ विशेषण पद भी साथ में लगाकर संस्कृत में यह बात कहदीगई है जिस विषय का कोई मंत्र है। ऐसे कुछ मंत्रों का सारांश यदि हिन्दी में दे दिया जाय तो पाठकों को उन मंत्रों की जाति तथा प्रकृति मादि के समझने में बहुत कुछ सहायता मिलेगी। अतः नीचे ऐसे ही कुछ मंत्रों का हिन्दी में दिग्दर्शन कराया जाता है। १ ॐ ही, हे यहाँ के क्षेत्रपात ! क्षमा करो, मुझे मनुष्य बानो, इस स्थान से चले जाओ, मैं यहाँ मल मूत्र का त्याग करता है, स्वाहा। . २ ॐ इन्द्रों के मुकुटों की रलप्रमा से प्रक्षामित पाद पम भाईसमगवान को नमस्कार, मैं शुद्ध जल से पैर धोता हूँ, स्वाहा। ३ ॐ ही . .""मैं हाथ धोता हूँ, स्वाहा ।
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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