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________________ [२४२] अंधे को पूर्णतया खेताम्बर ग्रंथ नहीं बना सके । बल्कि अनेक पयोंको निकाल डालने, परिवर्तित कर देने तथा ज्योंका त्यो कायम रखनेकी वजहसे उनकी यह रचना कुछ ऐसी विलक्षण और दोषपूर्ण होई है, जिससे ग्रंथकी चोरीका सारा भेद खुल जाता है। साथ ही प्रथकर्ताको योग्यता और उनके दिगम्बर तया सेताम्बर धर्मसम्बन्धी परिज्ञान आदिकर भी अच्छा परिचय मिल जाता है। पाठकोंके सन्तोषार्थ यहाँ इन्हीं सब घातका कुछ दिग्दर्शन कराया जाता है। (१) अमितगति-धर्मपरीक्षा पाँच परिच्छेदमें, '' नागके दिष्ट पुरुपकी कथाका वर्णन करते हुए, एक स्थान पर लिखा है-बिस समय 'वा' मरणासन्न हुआ तब उसने, अपने 'स्कंद' नामक शत्रुका समूल नाश करनेके लिए, पुत्रपर अपनी प्रान्तरिक इच्छा प्रकटकी और उसे यह उपाय बताया कि जिस समय मैं मर जाऊँ उस समय तुम मुझे मेरे शत्रुके खेतमें ले जाकर लकड़ी के सहारे खड़ा कर देना । साथही, अपने समस्त गाय, भैस तथा घोड़ोंके समूहको उसके खेतमें छोड़ देना, बिससे वे उसके समस्त धान्यका नाश कर देखें । और तुम किसी वृक्ष या घासकी मोटमें मेरे पास बैठकर स्कंदके भागमनकी प्रतीक्षा करते रहना । जिस वक्त वह क्रोध, भाकर मुझपर प्रहार करे तब तुम सत्र जोगोंको भुनाने के लिए बोरसे चिल्ला उठना और कहना कि स्कंदने मेरे पिताको मार डाला है। ऐसा करनेपर राजा स्कंदद्वारा मुझे मरा जान कर स्कंदको दण्ड देगा, जिससे वह पुत्रसहित मर जायगा। इस प्रकरण के तीन पब इस प्रकार है:एष यया क्षयमेति समूळ कंचन कर्म तथा कुरु वत्स। येन धामि विरं मुरलोके धमनाः कमनीयशरीर ॥ ८ ॥ क्षेत्रभमुष्य विनीय मृतं मा यधिनिपध्यागर्नु सुत कृत्या। .गौमहिषीहर्षवृन्दमशेष शस्यसमूहविनाशि विमुंच ॥
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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