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________________ का पाश्रय सेना पहा-परंतु फिर भी आप यह सिद्ध नहीं कर सके कि महारकनी ने विधवाविवाह का सर्वषा निषेध किया है। आपको अपनी कम्पना के अनुसार इतना तो स्वीकार करना ही पड़ा कि इस पद में असत् गदा की विधवाविवाह-विषि का अनोखा है-खाकि मूल में 'अमर' शब्द के साथ प्रसाद विशेषण नग्न हुमा नहीं है, वह सदा मात्र का पापक है । अत: आपने 'सोमदेवनीति' (नीति-वाक्यामृत ) के बिस वाक्य के आधार पर अपनी कल्पना गदी है वह इस प्रकार है सत्परिसयनव्या माना। इस वाक्य पर संस्कृत की बो टीका मिलती है और उसमें समर्थन के तौर पर जो वाक्य उद्धृत किया गया है उससे तो इस वाक्यं का भाशय यह मालूम होता है कि 'नोमवेशद्ध होते हैं वे एक बार विवाह करते हैं-विवाह के ऊपर या पश्चात दूसरा विवाह नहीं करते-कोर इससे पह नान पड़ता है कि इस वाक्य द्वारा ग्रहों के बहुविवाह का नियंत्रण किया गया है। अथवा यो कहिये कि वर्णिक पुरुषों को गहविवाह का जो स्वयंभू अधिकार प्राप्त है उस बेचारे या पुरुषों को बंधित रक्खा गया है। यथा, "टीका शोमन अक्षा भवन्ति के सरपरिणयमा एक धार सविधाका द्वितीयं च कुन्ठीवर्षः । तथा च sitaria मायाँ योऽत्र थवः स्याद् वृषमा पनि विधुत महत्त्वं तस्य नो माधि मनमाविषमुना इसके सिवाय, सोनीजी ने खुद पच नं० १७६ में प्रयुक्त र 'पुनरुदाई का वर्ष खी का पुनर्विवाह न करके पुरुष का पुनर्विवाह सूचित किया है, यहाँ कि यह बनता ही नहीं। ऐसी हालत में मासूम मही फिर किस भाषार मापने सोमदेवनीति के जात बाक्य का भाशय सीक एक बार विवाह से निकाला है ! मला बिना किसी प्राधार के
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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