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________________ [१८] वाक्य के साथ प्रारम्भ होता है। महारकबी ने विवाह रात्रि के बाद से उस रात्रि के बाद से जिस रात्रि को पंचाङ्गविवाह की सम्पूर्ण विधि सगात हो नाती है-चतुर्थीकर्म का उपक्रम करते हुए, प्रति दिन सुबह के वक्त पौष्टिक कर्म और रात्रि के समय शतिहोम, करने की व्यवस्था की है, और फिर चौथे दिन के प्रमातादि समयों का कृत्य बतलाया है, जिसमें विवाहमंडप के भीतर पूजनादि सामग्री से युक्त तथा अनेक चित्रादिका से चित्रित एक महामडन की नवीन रचना वधू का नूतन कलश स्थापन, संध्या के समय वधू-वर का षहाँ गीत वादिन के साथ स्नान और उन्हें गंधावतप्रदान भी शामिल है। इसके बाद सक्षेप में चतुर्थानि का सन्म दिया है और उसमें मुख्यतया नीचे शिखी क्रियाओं का उल्लेख किया है (१)ध्रुवतारा निरीक्षण के अनन्तर समा की पूजा (२) भगवान का अभिषेक-पुरस्सर पूजन तथा होम (३) होम के बाद पक्षों के गले में घर की दी हुई सोने की तामी का मंत्रपूर्वक बाधा नाना (१) मंत्र पढ़कर दोनों के गले में सम्बंधमाला का डाला जाना (५) मागों का तर्पण अथवा उन्हें पनि का दिया नाना (६) भमि पूजनादि के अनंतर वर का पान बीड़ा कर बधूमाहित मगर को देखन नाना (७) ताश्चात् होम के शेष कार्य को पूरा करके पूर्णाहुति का दिया जाना (E) होम की मस्म का वर वधू को वितरण *स कथन के कुछ वाक्य नीचे दिये जाने है"तता प्रसूति नित्यं च प्रमाने पौपिकं मतम् । निशीथे शान्ति होमेद चतुणे नागार्पणम् ॥ १८ ॥ तक्ष्म बचप्रमाने व गुस्माबायो: पुण्कासम्मान" ॥१४॥ "मवीन घट."संस्थापंपचार पक्षी ॥ १५३ ॥ "सावित्येवमेतन्महामण्डलं चशपूजाचनायोग्य सहन्यपूर्णम् ॥१५॥ "सरागेविसंम्यामिधानेहशील परस्थापि धायाःशुमस्नानकंधा वढंचालन युज्यते वावरेण सुमांगल्य पावित्रगानादिपर्वम्॥१६॥ "दिव्यगावस्य गंधापाविच सुगधं वा मवीति... संधारितातता मन्येवं भवन्तु ।
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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