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________________ [१८] - इस पद्य से यह स्पष्ट ध्वनि निकलती है कि इसमें ऐसी स्त्री कों धर्म से न त्यागने की अथवा उसके साथ इतनी रिभायत करने की बों बात कही गई है उसका मूल कारण उस स्त्री का दुष्टा न होना है और इसलिये यदि वह दुष्टाहो अप्रियवादिनी हो अथवा भट्टारकजी कएक दूसरे पद्यानुसार अति प्रचण्डा, प्रयाग, कपालिनी, विवादकत्री, अर्थचोरिणी, आनन्दिनी और सप्तगृहप्रवेशिनी जैसी कोई हो, जिसे भी भापने त्याग देने को लिखा है तो वह धर्म से भी त्याग किये जाने को अथवा यो कहिये कि तलाक की अधिकारिणी है, इतनी बात इस . पंच से मी साफ सूचित होती है । चाहे वह किसी का भी मत क्यों न हो। *वह पद्य इस प्रकार हैअंतिप्रचण्ड प्रबल कपालिनी, विवादक स्वयमथचरिणीम् । भाक्रन्टिनी लगृहप्रवेशिनी, त्यजेच भायां दशपुत्रपुषिणीम् ॥३३॥ । इस पद्य में यह कहा गया है कि जो विवाहिता स्त्री अति प्रचण्ड हो, अधिक बलवती हो, कपालिनी (दुर्गा) हो, विवाद करने वाली हो. धनाविक वस्तुएं चुराने वाली हो, ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने प्रथा रोन बासी हो. और सात घरों में घरघर में डोलने वाली हो. वह यदि दस पुत्रों की माता भी हो तो भी उसे त्याग देना चाहिये। इस पत्र के अनुवाद में लोनीजी ने 'भार्यो' का अर्थ 'कन्या' गलत किया है और इसलिये आपको फिर 'दशपुत्रपत्रिणीम् का अर्थ 'भागे चलकर दशपुत्रपुत्रीवाली भी क्यों न हो' पंसा कर पाजो ठीक नहीं है मायाँ विवाहिताली को कहते हैं। इलब में यह पद्य ही नहीं असंगत जान पड़ता है। इसे त्याग विषयफ उमा दोनों पक्षों के साथ में देना चाहिये था। परन्तु 'कहीं कीट कहीं का रोडा मानमती ने कुनया जोटा 'पाली कहावत को धरिः तार्थ करने वाले महारकजी इधर उधर से उठाकर रपन हुए पद्यों की तरलीव देने में इतने कुशल, सावधान अथवा विवेकी नहीं थे। इसी से उनके ग्रंथ में जगह जगह ऐसी त्रुटियाँ पाई जाती है और यह बात पसि भी जादिन की जा चुकी है।
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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