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________________ [१६] १० दिनको मर्यादा का बख किया है और इस तरह पर मामण. वैश्य दोनों ही के लिये १० दिनकी मर्यादा बताई गई है । इसके सिवाय, एक श्लोक में वर्गों की मर्यादा-विषयक पारस्परिक अपेक्षा, (निस्वत, Ratio) का नियम भी दिया है और उसमें बताया है कि नहीं प्राणों के लिये तीन दिन का सूतक, वहाँ पैश्यों के लिये चार दिन का, क्षत्रियों के लिये पाँच दिन का और शकों के लिये पाठ दिन का समझना चाहिये । यथा:। प्रस्तेर्दशमे चादि बादशे वा चतुर्दश। । लकाशीवाद्धिः स्थानिभादीनां यथाक्रमम् ॥ १-१०॥ प्रसूनौ चैव निदोष शाई सूतकं भवेत् ।। क्षत्रस्य द्वादशाई सच्द्रस्य पक्षमायकम् ॥ १३-४६ ॥ * त्रिदिन यत्र विषाणां वेश्यानां स्यावतुर्दिनम् । क्षत्रियाणां पंचदिन गन्द्राणां च विनाटकम् ॥-७७ ॥ 'इन तीनों कोकों का कथन, एक विषय से सम्बन्ध रखते हुए भी, परसर में कितना विरुद्ध है इसे बतखाने की जरूरत नहीं, और यह तो स्पष्ट ही है कि सासरे लोक में दिये हुए अपेक्षा नियम का पहने दो लोकों में कोई पालन नहीं किया गया। उसके अनुसार wwwwwwwwww इस लोक का अर्थ देने के बाद सोनीजी ने जो माषार्थ विया है वह उनका निजी कल्पित जान पड़ता है-मूख से ससका अर्थ सम्बन्ध नहीं है। सूत के अनुसार इस लोक का सम्बन्ध प्रागे पीछे दोनों भोर के कथनों से है। आगे भी घर में लोक में अननाशांच की मर्यादा का उल्लेख किया गया है। उस परंभी इस लोक की व्यवस्था लगाने से वही पिडमाना बड़ी हो जाती है। इसी तरह ४६ लोक के अनुवाद में जो उन्होंने लिखा है कि 'पना के लिये सूतक नहीं पह मी मूल से बाहर की चीज़ है।
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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