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________________ अंथ वाली सपा बगावटी हैं और इनका अवतार कुछ क्षुद्र पुरुषों यात्रा तस्कर लेखकों द्वारा भाधुनिक महारकी युग में हुआ है। इस सेखमाला ने समाज को जो नया सन्देश सुनाया, जिस भूल तपां पलत का अनुभव कराया, अन्धश्रद्धा की जिस नींद से उसे जगाया और उसमें जिस विचारस्वातव्य तया तुलनात्मक पद्धति से ग्रंथों के अध्ययन को उत्तेजित किया, उसे यहाँ बताने की जहरत नहीं है, उसका अच्छा अनुभव उक्त लेखों के पढ़ने से ही सम्बंध रखता है । हाँ इतना ज़रूर बतलाना होगा कि इस प्रकार की लेखमाला उस वक्त जैन समाज के शिये एक विलकुल ही नई चाल थी. इसने उसके विचार वातावरण में अच्छी क्रान्ति उत्पन्न को, सहृदय विद्वानों ने इसे खुशी से अपनाया, इसके अनेक लेख दूसरे पत्रों में उद्धृत किये गये; अनुगोदन किय गये, मराठी में अनुवादित हुए और अलग पुस्तकाकार भी छपाये गये। स्गद्वादषारिधि पं० गोपालदासजी वरेण्या मे, जिनसेन त्रिवर्णाचार की परीक्षा के बाद से, त्रिवर्णाचारों को अपने विद्यालय के पठनक्रम से निकाल दिया और इसर विचारशील विद्वान् मी उस वक्त से बराबर अपने कार्य तथा व्यवहार के द्वारा उन लेखों की उपयोगितादि को स्वीकार करते अथवा उनका अमिनदन करते भा रहे हैं। और यह सब उक्त लेखमाला की सफलता का अच्छा परिचायक है। उस वक्त-निनसेन त्रिवर्णाचार की परीक्षा लिखते समय मैंने यह प्रगट किया था कि सोमसेन-त्रिवर्णाचार की परीक्षा भी एक स्वतंत्र लेख द्वारा की जायगी। परंतु खेद है कि अवकाश के कारण इच्छा रहते मी, मुझे भान तक उसकी परीक्षा * बबई के जैन प्रन्धरनाकर कार्यालय ने 'अन्य परीक्षा' प्रथम भाग और द्वितीय माग नाम से, पहले चार प्रन्यों के लेखों को दो मागों में छाप कर प्रकाशित किया है और उनका नागत मल्य क्रमशः छह आने तथा चार पाने क्या है।
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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