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________________ वर्ती श्रादिक सब नरकं गये ; क्योंकि ये दोनों कन्याएँ युवावस्था में घर पर अविवाहिता रहीं और तब वे रजस्वला भी हुई, यह स्वाभाविक है। परंतु ऐसा कोई भी जैनी नहीं कह सकता। सब जानते हैं कि भगवान ऋषभदेव और उनके सब पुत्र निर्वाण को प्राप्त हुए और उक्त दोनों माताएँ भी ऊँची देवगति को प्राप्त हुई । इसी तरह सुलोचना भादि हबारों ऐसी कन्याओं के उदाहरण भी सामने रक्खे जा सकते हैं जिनके विवाह युवावस्था में हुए जब कि वे रनोधर्म से युक्त होचुकी थीं और उनके कारण उनके माता पिता तथा माइयों को कहीं भी नरक जाना नहीं पड़ा | अतः भट्टारकली का यह सब कथन जैन धर्म के अत्यंत विरुद्ध है और हिंदूधर्म की उसी शिक्षा से सम्बंध रखता है जो एक अविवाहिता कन्या को पिता के घर पर रजस्वला हो जाने पर श्रद्धा ठहराता है । इस प्रकार के विधिवाक्यों तथा उपदेश ने ही समान में वाल-विवाह का प्रचार किया है और उसके द्वारा समाज तथा धर्म को मारी, निःसीम, अनिवर्चनीय तथा कल्पनातीत हानि पहुँचाई है । ऐसे जहरीले उपदेश जबतक समान में कायम रहेंगे, और उनपर अमल होता रहेगा तबतक समान का कमी उत्यान नहीं हो सकता, वह पनप नहीं सकता और न उसमें धार्मिक जीवन ही मा सकता है। ऐसी छोटी उम्र में कन्या का विवाह महज उसी के लिये घातक नहीं है बल्कि देश, धर्म और समान तीनों के लिये घातक है। वास्तव में माता पिता का यह कोई खास फार्च अथवा कर्तव्य नहीं है कि वे अपनी संतान का विवाह कर ही करें और पह मा छोटी उम्र में। ' उनका मुख्य कर्तव्य तथा धर्म है संतान को मुशिक्षित करना, अनेक प्रकार की उत्तम विधाएँ तथा कलाएं सिखसाना, खोटे संस्कारों से उसे अलग रखना, उसकी शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों को विकसित करके उनमें दृद्धता लाना, उसे जीवनयुद्ध में स्थिर रहने तथा विजयी
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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