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________________ [१९१] कहाँ से शव उसके भीतर घुस आता है ? क्या. शहमा कर्म मार्ग न करना है ! अपना शव लान नहीं किया करत ! शूद्रों को बराबर स्नान करते हुए देखा जाता है, और उनका फर्ग स्लान न करना कहीं भी नहीं लिखा। स्वयं महारानी ने सातवें अध्याय में शो का वर्ग निक्षणों की सेवा तथा शिल्प कर्म बताया है और यहां तक लिखा है किये चारों पर्या अपने अपने नियत कर्म के विशेष से कहे गये हैं। जैनधर्म को पालन करने में इन.. चारों वणों के मनुष्य परम समर्थ है और उसे पालन करते हुए वे सब परस्पर में माई गाई के समान हैं । यथा-- "विपक्षप्रियवैश्यानां वास्तु सेवका मता ॥ १० ॥ तेषु माना विध शिल्पं कर्म प्रोकं विशेषतः ॥४॥ विप्रतत्रियविदादः प्रोकाः क्रियाधिशेषतः। . जैनधर्म पर.शक्षास्ते सर्व बान्धवोपमा १४२॥ ..फिर आपका यह लिखना कि सात दिन तक लान न करने से, कोई शुद्ध हो जाता है, कितना असंगत है और सदों के प्रति. जितना तिरकार.फा घोतक तथा अन्यायमय है, इसे पाठक स्वयं समझ सकते, हैं। हाँ, यदि कोई विज असें तक शिल्पादि कर्म करता रहे तो उसे भधारकजी अपने लक्षण के अनुसार यह कह सकते थे परन्तु स्लान न करना कोई शंद कर्म नहीं है-उसके लिये रोगादिक के भनेक कारण समी के लिये हो सकते हैं और इसलिये महन उसकी वजह से किसी में शदत्व का योग नहीं किया जा सकता। मालूम जहासिति दिन के बाद यदि वह गृहस्प फिरनहाना शुरू कर देवे तो महारानीको दृष्टि में उसका वह शावना दूर होता है या कि नहीं है, पंप में इस बाबत कुछ लिखा नहीं ... TARA ..!" (७) तीसरे अध्याय में महारकली. उस गनुष्य को जीवत 3 के लिये शर ठहराते हैं और गरने पर कुत्ते की योनि में जामाबताते
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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