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________________ ८.१०] वर, मोर घर पर हमेशा ही लेटे नब से लोग न करना चाहिये मोरन से लान किये बिना तिलक ही धारण करना चाहिये। . पहा शेतकी मालिश के अवसर पर गर्म ग से लाल को पात तो किसी तरह पर समझ में पा सकती है परन्तु घर पर सदा ही गर्म जल से लान करने की अपवा ठंडे नम से कमी मी लान न करने की बात कुछ समझ में नहीं पाती । मालूर नहीं उसका क्या कारण है और वह किस आधार पर अवम्बित है। क्या ठंडे नल से लान नदी-सरोवरादिक तीर्थों पर ही होता है अन्यत्र नहीं ! और घर पर उसके कर लेने से नलदेवता हट हो जाते हैं। यदि ऐसा कुछ नहीं तो फिर घर पर जल से लान करने में कौन बाधक है ! ठंढा नक्ष खास्थ्य के लिये बहुत लाभदायक है और गर्म नस प्रायः रोगी तथा भयक्त गावों के लिये बतलाया गया है। ऐसी हालत में महारानी की उफ्त मात्रा समीचीन मालूम नहीं होती---यह जैनशासन के विरुद्ध बैंचती है। लोकन्यवहार भी प्रायः उसके विरुद्ध है । लौकिक जन, श्रतु मादि के अनुकूल, घर पर स्लान के लिये ठंडे तथा गर्म दोनों प्रकार के नलका व्यवहार करने हैं। हिन्दुओं के धर्मशाखों से एक बात का पता चलता है और वह यह कि उनके गहाँ नदी शादि तीयों पर ही लान करने का विशेष माहाल्य है, उससे लान का फल माना गया है, अन्यत्र के लान से महब शरीर की शुद्धि होती है, लान का जो पुगपपल है वह नहीं मिलता और इसाधये उनके यहाँ तीर्थामाव में अपना तीर्थ से बाहर (घर पर) वय नस से लान करने की भी व्यवस्था की गई है। सम्भव है उसका एकान्त खेकर ही भटारकमी को यह भामा नारी करने की सूमी हो, जो मान्य किये जाने के योग्य नहीं । अन्यथा, हिन्दुओं के यहाँ भी दोनों प्रकार के स्नान का विधान पाया जाता है। यथाः
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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