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________________ [१०७ i: रविवार के दिन स्नानादिक का निधri T+ (8) मारकनी दूसर अध्याय में यह भी लिखते हैं किनविवार ६. इतधार ) के दिन दन्तधावन नहीं करना चाहिये; देख न मन चाहिये और न स्लाने ही करनी चाहिये । यथा---'': 7 : अवीरे व्यतीपाते संक्रान्ती जन्मासरे। '.. ' पर्जग्रहन्तकातुव्रताहीनी दिने ..' अभ्यां च चतुर्दश्यां पंचम्यांमवासर. बतादीनी दिनेष्वेन चिलमर्दनम् । तस्मात्मानं प्रकर्तव्य रविचार तुं वर्जयेत् ।। ७।। t, ''तैलमर्दन की बाधत तो और आपने लिख दिया कि उससे पुत्र की मरण हो चीता है परन्तु दन्तधावन और 'माने की बाबत कुछ भी ही उन्हें क्यों न करना चाहिये ? या उनके करने से रवि महाराज ( सूर्यदेवता । नाराज हो जाते हैं। यदि ऐसा है तब तो लोगों को बहुत कुछ विपति में पड़ना पड़ेगाक्योंकि अधिकांश जनता रविवार के दिन सविशेष रूप से स्नान करती है-छुट्टी का दिन होने से.उस दिन बातों को..भासी तरह से तेजादिक मलकर स्नान करने का अवसर मिलता है। इसके सिंघाय, उस दिन भगवान का पूजनादिक भी न हो सकेगा, जो.महारकली के कथनानुसार दन्तधापनपूर्वक मान की अपेक्षा रखता है; उन देवपितरों को भी उसदिन प्यासे रहना होगा जिनके लिय बान के अवसर पर महरिकनी ने तप केजर की व्यवस्था की है और जिसकी विचार श्रोग किया आयगा और मौं क्षौक में कितनी ही अशुचिता छा जायगी और बहुत से धर्मकार्यों को हानि पहुँचेगी, बल्कि त्रिवर्णाचार की मानविषयकं प्रविश्यकताओं को देखते हुए तो यह कहना भी कुछ अत्युक्ति में दाखिन न होगा कि 'धर्मकायों में एक प्रकार का प्रलयसा उपस्थित होजायगान मालूमनिह महारकबीने फिर
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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