SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७१ ) (ग) तीसरे खंड में 'शास्ति' नामके पाँचवें अध्यायका प्रारंभ करते हुए सबसे पहले निम्र लिखित श्लोक दिया है: ग्रहस्तुतिः प्रतिष्ठा च मूलमंत्र पिंपुत्रिके । शास्तिचक्रे क्रियादीपे फलशान्ती दशोत्तरे ॥ १ ॥ यह श्लोक वही है जो, उत्तर खंढके दस अध्यायोंकी सूची प्रगट करता हुआ, अन्तिम वक्तव्यमें नं० ५ पर पाया जाता है और जिसका पिछले लेखमें उल्लेख होचुका है । यहाँ पर यह श्लोक बिलकुल असम्बद्ध मालूम होता है और ग्रंथकर्ताकी उन्मत्तदशाको सूचित करता है । साथ ही इससे यह भी पाया जाता है कि ' अन्तिम वक्तव्य , अन्तिमखंड के अन्तमें नहीं बना बल्कि वह कुल या उसका कुछ भाग पहलेसे गढ़ा जाचुका था । तबही उसके उक्त वाक्यका यहाँ इतने पहलेसे अवतार होसका है। इस श्लोक के आगे प्राकृतके ११ पर्या में संस्कृतछायासहित इस अध्यायका जो कुछ वर्णन किया है वह पहले पद्यको छोड़कर जिसमें मंगलाचरण और प्रतिज्ञा है, किसी यक्षकी पूजासे उठाकर रक्खा गया है और उसकी 'जयमाल' मालूम होता है । * (घ) तीसरे खंडके ९ वें अध्यायमें ग्रहचारका वर्णन करते हुए ' शनेश्वरचार' के सम्बंधमें जो पय दिया है वह इस प्रकार है: - शनैश्वरं चारमिदं च भूमिपोयो वेत्ति विद्वान्निभृतो यथावत् । सपूजनीय भुवि लब्धकीर्तिः सदा सहायेव हि दिव्यचक्षुः ॥ ४३ ॥ . * मंगलाचरणके बादका पद्य निम्न प्रकार है और अन्त में ' घत्ता " के •बाद मइ निम्मल होउ...' इत्यादि एक पद्य दिया है: - " चारणावास कैलास सैलासिओ, किंणरीवेणुवीणाणीतोसिओ । सामवण्णो सउण्णो पसण्णो सुहो, आइ देवाण देवाहि पम्मी मुहो ॥ ३ ॥"
SR No.010628
Book TitleGranth Pariksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages127
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy