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________________ (६०) ऊपरके पद्यमें 'नारदस्थ ' के स्थानमें 'भद्रवाहु । का परिवर्तन करना रह गया हो । परन्तु कुछ भी हो ऊपरके इस संपूर्ण कथनसे इस विषयमें कोई संदेह नहीं रहता कि इस अध्यायका यह सब कथन, जो २२० । पद्योंमें है, एक या अनेक सामुद्रकशास्त्रों-लक्षणग्रंथों-अथवा तद्विषयक अध्यायोंसे उठाकर रक्खा गया है और कदापि भद्रबाहुश्रुतकेवलीका' वचन नहीं है। (६) भद्रबाहुसंहिताके पहले खंडों दस अध्याय हैं, जिनके नाम हैं-१ चतुर्वनित्यक्रिया, २ क्षत्रियनित्यकर्म, ३ क्षत्रियधर्म, ४ कृतिसंग्रह, ५ सीमानिर्णय, ६ दंडपारुष्य, ७ स्तैन्यकर्म, ८ स्त्रीसंग्रहण, ९ दायभाग और १० प्रायश्चित्त । इन सब अध्यायोंकी अधिकांश रचना प्रायः मनु आदि स्मृतियों के आधार पर हुई है, जिनके सैकड़ों पद्य या तो ज्योंके त्यों और या कुछ परिवर्तनके साथ जगह जगह पर इन अध्यायोंमें पाये जाते हैं । मनुके १८ व्यवहारों-विवादपदों का भी अध्याय नं० ३ से ९ तक कथन किया गया है । परन्तु यह सब कथन' पूरा और सिलसिलेवार नहीं है । इसके बीचमें कृतिसंग्रह नामका चौथा अध्याय अपनी कुछ निराली ही छटा दिखला रहा है-उसका मजमून ही दूसरा है और उसमें कई विवादोंके कथनका दंशन तक भी नहीं कराया गया। इन अध्यायों पर यदि विस्तारके साथ विचार किया जाय तो एक खासा अलग लेख बन जाय; परन्तु यहाँ इसकी जरूरत न समझकरः सिर्फ उदाहरणके तौरपर कुछ पद्योंके नमूने दिखलाये जाते हैं: क-ज्योंके त्यों पध। त्रविद्येभ्यस्त्रयी विद्यां दंडनीतिं च शाश्वतीम् । आन्वीक्षिकी चात्मविद्यां वातारंभांश्च लोकतः ॥२-१३४ ॥ तैः साथै चिन्तयेनित्यं सामान्यं संधिविग्रहम् । स्थानं समुदयं गुप्तिं लब्धप्रशमनानि च ॥-१४५॥ .
SR No.010628
Book TitleGranth Pariksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages127
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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