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________________ (४८) कुछ शब्द करे तो उसके फलका विचार पद्य नं०४५ में दिया है और उसके कुछ शब्द न करने आदिका विचार इस ऊपर उद्धृत किये। हुए पद्यमें बतलाया है । इससे इस पद्यका साफ सम्बन्ध उक्त सात पद्योंसे. पाया जाता है। मालूम होता है कि ग्रंथकर्ताको इसका कुछ भी स्मरण नहीं रहा और उसने उक्त सात पद्योंको छोड़कर इस पद्यको यहाँ पर असम्बद्ध बना दिया है। ३- राजा कुमारो नेता व दूतः श्रेष्टी चरो द्विजः । गजाध्यक्षश्च पूर्वाद्याः क्षत्रियाद्याश्चतुर्दिशम् ॥ ५-४ ॥ यह पद्य यहाँ 'शिवारत ' प्रकरणमें बिलकुल ही असम्बद्ध मालूम होता है । इसका यहाँ कुछ भी अर्थ नहीं हो सकता । एक बार इसका अवतरण इसी ३१ वें अध्यायके शुरूमें नं० २८ पर हो चुका है और बृहत्संहिताके ८६ वें अध्यायमें यह नं० ३४ पर दर्ज है। नहीं मालूम . इसे फिरसे यहाँ रखकर ग्रंथकर्ताने क्या लाभ निकाला है । अस्तु । इसके बदलेमें इस प्रकरणका 'शान्ता...' इत्यादि पद्य नं०१३ ग्रंथकर्तासे छूट गया है और इस तरहपर लेखा बराबर हो गया-प्रकरणके १४ पद्योंकी संख्या ज्योंकी त्यों बनी रही। ४- क्रूरः षष्टे क्रूरदृष्टो विलमाद्यस्मिन्त्राशौ तद्गृहांगे व्रणः स्यात् । एवं प्रोक्तं यन्मया जन्मकाले चिह्न रूपं तत्तदस्मिन्विचिन्त्यं ॥ ११-१३ ॥ इस पद्यके उत्तरार्धमें लिखा है कि इसी प्रकारसे नन्मकालीन चिह्नों और फलोंका जो कुछ वर्णन मैंने किया है उन सबका यहाँ भी विचार करना चाहिए।' वराहमिहिरने 'वृहज्जातक' नामका भी एक ग्रन्थ बनाया है जिसमें जन्मकालीन चिह्नों और उनके फलोंका वर्णन है । इससे उक्त कथनके द्वारा वराहमिहिरने अपने उस ग्रंथका उल्लेख किया मालूम होता * यथा:-"इत्येवमुक्ते तस्मूर्ध्वगायाश्चिरिवरिल्लीतिरुतेऽर्थसिद्धिः। . अत्याकुलत्वं दिशिकारशब्दे कुचाकुचेत्येवमुदाहृते वा ॥ ४५ ॥.. -
SR No.010628
Book TitleGranth Pariksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages127
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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