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________________ (४६) तमाशा किया है, और वह यह है कि अन्तिम श्लोक नं० १४ को तोः . अन्तमें ही उसके स्थान पर (नं० १९५ पर) रक्खा है। बाकी श्लोकोमेसे. पहले पाँच श्लोकोंका एक और उसके बादके सात श्लोकोंका दूसरा ऐसे. दो विभाग करके दूसरे विभागको पहले और पहले विभागको पीछे नकल किया है । ऐसा करनेसे श्लोकोंके क्रममें कुछ गड़बड़ी हो गई है। . अन्तिम श्लोक नं० १९५, जो नूतन वस्त्रधारणका विधान करनेवाले दूसरे विभागके श्लोकोंसे सम्बंध रखता था, पहले विभागके श्लोकोंके अन्तमें रक्खे जानेसे बहुत खटकने लगा है और असम्बद्ध मालूम होता है । इसके सिवाय अन्तिम श्लोक और पहले विभागके चौथे श्लोकमें कुछ थोड़ासा परिवर्तन भी पाया जाता है। उदाहरणके तौरपर यहाँ इस प्रकरणके दो श्लोक उद्धृत किये जाते हैं: वस्त्रस्य कोणेषु वसन्ति देवा नराश्च पाशान्तदशान्तमध्ये । शेषात्रयश्चात्र निशाचरांशास्तथैव शय्यासनपादुकासु ॥१॥ भोक्तुं नवाम्वर शस्तमुक्षेऽपि गुणवर्जिते । विवाहे राजसम्माने ब्राह्मणानां च सम्मते ॥ १४ ॥ भद्रबाहुसंहितामें पहला श्लोक ज्योंका त्यों नं० १९० पर दर्ज है और दूसरे श्लोकमें, जो अन्तिम श्लोक है, सिर्फ 'ब्राह्मणानां च सम्मते . के स्थानमें 'प्रतिष्ठामुनिदर्शने' यह पद बनाया गया है। - (ग) वराहमिहिरने अपनी बृहत्संहितामें अध्याय.नं० ८६ से लेकर ९६ तक ११ अध्यायोंमें 'शकुन ' का वर्णन किया है। इन अध्यायोंके पद्योंकी संख्या कुल ३१९ है । इसके सिवाय अध्याय नं० ८९ के शुरूमें कुछ थोड़ासा गद्य भी दिया है। गद्यको छोड़कर इन पद्योंमेंसे ३०१ पद्य भद्रवाहुसंहिताके 'शकुन ' नामके ३१ वें अध्यायमें उठाकर रक्खे गये हैं और उन पर नम्बर भी उसी ( प्रत्येक अध्यायके अलग अलग.) क्रमसे डाले गये हैं जिस प्रकार कि वे उक्त वृहत्संहितामें पाये जाते हैं। वाकीके १८ पद्यों से कुछ पद्य छूट गये और कुछ छोड़ दिये गये मालूम
SR No.010628
Book TitleGranth Pariksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages127
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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