SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२) हिन्दुओंके यहाँ ज्योतिषियोंमें 'वराहमिहिर नामके एक प्रसिद्ध विज्ञान आचार्य हो गये हैं। उनके बनाये हुए ग्रंथों में 'वृहत्संहिता' नामना एक सात ग्रंथ है, जिसने लोग 'वाराहीसंहिता' भी कहते हैं। इस ग्रंथमा उल्लेख विनमनी ११ वी शताब्दिमें होनेवाले 'सोमदेव नाम दिगम्बर जैनाचार्य ने भी अपने 'यशस्तिल' ग्रंथमें किया है । साथ ही जैनत्तत्वादर्श' आदि नेताम्बर ग्रंथों में भी इसका उल्लेत पाया जाता है। इस तरह पर दोनों संप्रनायोंके विद्वानों. द्वारा यह हिन्दुओंका एक ज्योतिष ग्रंथ माना जाता है। परन्तु पाठ-. कोंको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस वृहत्संहिताके अध्यायके अध्याय भन्याहुसंहितामें नल किये गये हैं-ज्यो त्यों या कहीं कहीं कुछ महे और अनावश्यक परिवर्तनके साथ उठाकर रक्खे गये हैं-परन्तु यह सब कुछ होते हुए भी वराहमिहिर या उनके इस ग्रंयका कहीं नामोल्लेस तक नहीं लिया । प्रत्युत, वराहमिहिरके इन सद वचनोंको भद्रबाहुके बदन प्रगट जिया गया है और इस तरह पर एक अजैन विज्ञानके ज्योतिषश्यनच्चे जैन ज्योतिषना ही नहीं बल्कि जैनियोंके केवलीका कयन बतलान सर्व साधारणको घोसा दिया: • गया है । इस नीचता और घृष्टता कार्यन्ना पाठक जो चाहे नाम रख सकते हैं और उसके उपलक्षमें ग्रंयकर्ताको चाहे जिस पदवीसे विभूपित कर सकते हैं, मुझे इस विषयमें कुछ कहनेकी जरूरत नहीं है। मैं सिर्फ यहाँ पर ग्रंयाके इस कृत्या पूरा परिचय दे देना ही काफी समझता हूँ और वह परिचय इस प्रकार है: (क) भद्रबाहुसंहिताके दूसरे संडमें 'करण' नामका २९ वाँ १ अध्याय है, जिसमें अल ९ पत्र हैं। इनमेंसे शुरुके ६ पय बृह-. संहिताके तिथि और करण नामले ९९ वें अध्यायसे, जिसमें सिर्फ . ८ पद्य हैं और पहले दो पछ केवल 'तिथि से सम्बंध रखते
SR No.010628
Book TitleGranth Pariksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages127
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy