SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३२) छिपानेके लिए आगे पीछेके कथनका ठीक सम्बन्ध उपस्थित नहीं रहताइस बातका पूरा खयालं नहीं रहता कि मैंने अभी क्या कहा था और अब क्या कह रहा हूँ। मेरा यह कथन पहले कथनके अनुकूल है या प्रतिकूल-इस लिए वह पकडमें आ जाता है और उसका सारा झूठ खुलं जाता है। ठीक. यही हालत कूटलेखकों और जाली ग्रंथ बनानेवालोंकी होती है। वे भी असत्यवक्ता हैं। उन्हें भी इस प्रकारकी बातोंका पूरा ध्यान नहीं रहता और इस लिए एक न एक दिन उन्हींकी कृतिसे उनका वह सब कूट और जाल पकढ़ा जाता है और सर्व साधारण परः खुल जाता है। यही सब यहाँ पर भी हुआ है। इसमें पाठकोंको कुछः आश्चर्य करनेकी जरूरत नहीं है । आश्चर्य उन विद्वानोंकी बुद्धि पर होना चाहिए जो ऐसे ग्रंथको भी भद्रबाहु श्रुतकेवलीका बनाया हुआ मान बैठे. हैं। अस्तु । अब इस लेखमें आगे यह दिखलाया जायगा कि यह ग्रंथ विक्रमकी ११ वीं शताब्दीसे कितने पीछेका बना हुआ है। .६ वसुनन्दि आचार्यका बनाया हुआ 'प्रतिष्ठासारसंग्रह' नामका एक प्रसिद्ध प्रतिष्ठापाठ है । इस प्रतिष्ठापाठके दूसरे परिच्छेदमें ६२ श्लोक हैं, जिनमें 'लमशुद्धि का वर्णन है और तीसरे परिच्छेदमें ८८ श्लोक हैं, जिनमें 'वास्तुशास्त्र' का निरूपण है । दूसरे परिच्छेदके श्लोकोंमेंसे लग-- भग ५० श्लोक और तीसरे परिच्छेदके श्लोकों से लगभग ६० श्लोक इस ग्रंथके दूसरे खंडमें क्रमशः 'मुहूर्त' और 'वास्तु' नामके अध्यायोंमें उठाकर रक्खे गये हैं। उनमेंसेदोश्लोक नमूनेके तौर पर इस प्रकार हैं:. . पुनर्वसूत्तरापुष्पहस्तश्रवणरेवती-1 रोहिण्यश्विमृगःषु प्रतिष्ठां कारयेत्सदा ॥२७-११॥ जन्मनिष्क्रमणस्थानज्ञाननिर्वाणभूमिषु । अन्येषु पुण्यदेशेषु नदीकूलनगेषु च ॥ ३५-४॥ इनमेंसे पहला श्लोक उक्त प्रतिष्ठापाठके दूसरे परिच्छेदमें नं. ५ पर और दूसरा श्लोक तीसरे परिच्छेदमें नं० ३ पर दर्ज है। इससे प्रगट . .
SR No.010628
Book TitleGranth Pariksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages127
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy