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________________ अध्याय है और उसके प्रतिज्ञा-वाक्यमें भी निमित्तकथनकी प्रतिज्ञा की गई है । यथा: अथ वक्ष्यामि केषांचिनिमित्तानां प्ररूपणं । कालज्ञानादिभेदेन यदुक्तं पूर्वसूरिभिः ॥ १ ॥ इस तरह पर इस खंडमें निमित्ताध्यायोंकी बहुलता है । यदि दो निमित्ताध्यायोंके होनेसे ही तीसरे खंडका नाम 'निमित्त ' खंड रक्खा गया है तो इस खंडका नाम सबसे पहले 'निमित्तखंड ' रखना चाहिए था; परन्तु ऐसा नहीं किया गया। इस लिए खंडोंका यह नामकरण भी समुचित प्रतीत नहीं होता। यहाँ पर पाठकोंको यह जानकर और भी आश्चर्य होगा कि इस खंडके शुरूमें निमित्तग्रंथके कथनके लिए ही प्रश्न किया गया है और उसीके कथनकी प्रतिज्ञा भी की गई है। यथाः -- मुखग्रामं लघुग्रंथ स्पष्टं शिष्यहितावहम् । । सर्वज्ञभावितं तभ्यं निमित्तं तु ब्रवीहि नः ॥२-१-१४॥ भवद्भिर्यदहं पृटो निमितं जिनभापितम् । समासव्यासत: सर्वे तीनवोध यथाविधि ॥ -२-२ ॥ ऐसी हालतमें इस खंडका नाम 'ज्योतिपखंड ' कहना पूर्वापर विरोधको सूचित करता है । खंडोंके इस नामकरणके समान बहुतसे अध्यायोंका नामकरण भी ठीक नहीं हुआ । उदाहरणके तौरपर तीसरे खंडके 'फल' नामके अध्यायको लीजिए । इसमें सिर्फ कुछ स्वमों . और ग्रहोंके फलका वर्णन है। यदि इतने परसे ही इसका नाम 'फलाध्याय' रक्खा गया तो इससे पहलेके स्वमाध्यायको और ग्रहाचार प्रकरणके अनेक अध्यायोंको फलाध्याय कहना चाहिए था । क्योंकि उनमें भी इसी प्रकारका विषय है । बल्कि उक्त फलाध्यायमें जो ग्रहाचारका वर्णन है उसके सब श्लोक पिछले ग्रहाचारसंबंधी अध्यायोंसे
SR No.010628
Book TitleGranth Pariksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages127
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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