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________________ अन्य परीक्षा। ...इन तीनों श्लोकोंको स्मृतिरत्नाकर' आदि ग्रंथोंमें विज्ञानेश्वरका वचन लिखा है । विज्ञानेश्वर याज्ञवल्क्यस्मृतिकी 'मिताक्षरा' टीकाका, कर्ता है । इस प्रकरणमें, दूसरे स्थानोंपर, 'इति विज्ञानेश्वरादयः' 'इदं च सर्व विज्ञानेश्वराद्यनुरोधेनोक्तं,' ' इति विज्ञानेश्वरः,' इत्यादि पदोंके द्वारा विज्ञानेश्वरके नामका उल्लेख पाया जाता है। वह बदलने या निकालनेका रह गया है। . . (ग) उपर्युक्त श्लोकोंसे थोड़ी दूर आगे चलकर, इस प्रकरकणमें, निम्न • लिखित' पाँच वाक्य दिये हैं। : (१) 'असपिंडस्यापि . यद्गृहे मरणं तद्गृहस्वामिस्त्रिरात्रमित्यंगिराः।। . . . (२) "एकरात्रमिति।। . . (३.) तथा च गौतमः- त्र्यहं मातामहाचार्यश्रोत्रियेप्वशुचिर्भवेत् ।' (४) प्रचेताः मातृण्वसामातुलयोश्च श्वश्चश्वशुरयोगुरौ मृते चर्विजियाज्ये च त्रिरात्रेण विशुध्यति ।। . . . . (५)'संस्थिते पक्षिणीं रात्रि दौहित्रे भगिनीसुते । संस्कृते तु त्रिरात्रं स्यादिति गौतमः ।' . . इन. वाक्योंमें पहले नम्बरका वाक्य अंगिरा ऋषिका है। अंगिराका नाम भी इस वाक्यके अन्तमें मिला हुआ है। शायद इस मिलापके. कारणही त्रिवर्णाचारके कर्ताको इसके बदलनेका ख़याल नहीं आया। अन्यथा उसने स्वयं दूसरे स्थानपर, इसी प्रकरणमें, अंगिरा ऋषिके निम्न लिखित श्लोककों, 'तथाच गौतमः' लिखकर, गौतमस्वामीका. बना दिया है: " यदि, कश्चित्प्रमादेन म्रियेताग्न्युकादिभिः । तस्याशौचं विधातव्यं कर्तव्या चोदककिया ॥.' . १०
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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