SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रन्थ-परीक्षा। . ...यदि जिनसेन भट्टारककी इस योग्यतामें कुछ भी सत्यता है तो.कहना होगा कि यह 'जिनसेन त्रिवर्णाचार' उनका बनाया हुआ नहीं है । क्योंकि जिनसेनत्रिवर्णाचारके कर्ताकी योग्यताका जो दिग्दर्शन ऊपर कराया गया है, उससे मालूम होता है कि वे एक बहुत मामूली, अदूरदर्शी और साधारण:बुद्धिके आदमी थे । और-यदि सोमसेनः भट्टारकके. पट्टपर प्रतिष्ठित होनेवाले जिनसेन भट्टारककी, वास्तवमें, ऐसी ही योग्यतो थी जैसी कि जिनसेनत्रिवर्णाचारसे ज़ाहिर है-पटोवलीमें दी हुई योग्यता: नितान्त- असत्य है-तो कह सकता हैं कि उन्हीं भट्टारकजीने यहाजिनसेनत्रिवर्णाचार बनाया है। परन्तु फिर भी इतना ज़रूर कहना होगा कि उन्होंने सोमसेन-भट्टारकके पट्ट पर होनेवाले जिनसेन. भट्टारककी हैसियतसे इस ग्रंथको नहीं बनाया है। यदि ऐसा होता तो वे इस ग्रंथमें कमसे कम अपने गुरुया पूर्वज सोमसेन भट्टारकका ज़रूर उल्लेख करते जैसा कि: आम तौर पर: सब भट्टारकोंने किया है । और साथ ही उनःपयोंमेंसे ब्रह्मसूरिका नाम उड़ाकर उनके स्थानमें ' गौतमर्षि'. न रखते जिनको उनके पूर्वज, सोमसेनने-बड़े गौरवके साथ रक्खा था: बल्कि अपना कर्तव्यः: समझकर. ब्रह्मसूरिके , नामके साथ सोमसेनका नाम भी और अधिक देते। परन्तु ऐसा नहीं किया गया, इससे . ज़ाहिर है कि यह ग्रंथ उक्त भट्टारककीः हैसियतसे नहीं बना है। बहुत संभव है कि जिनसेनके नामसे किसी दूसरे. ही व्यक्तिने इस ग्रंथका निर्माण किया हो; परन्तु कुछ भी हो,-भट्टारक जिनसेन इसके विधाता हो या कोई दूसरा व्यक्ति इसमें सन्देह नहीं कि, जिसने भी, इस त्रिवर्णाचारका सम्पादन किया है। उसका ऐसा आभिप्राय जरूर रहा है कि यह ग्रंथ सोमसेन औरः। ब्रह्मसूरिके त्रिवर्णाचारोंसे पहला, प्राचीनः और अधिक प्रामाणिक: समझा. जाय। यही:कारण है जो उसने सोमसेन त्रिवर्णाचारके अनेक पद्योंमेंसे 'ब्रह्मसूरि' का नाम उड़ाकर उसके स्थानमें ७०
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy