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________________ ग्रन्थ-परीक्षा। . . . . . तदा कुलधारोत्पत्तिस्त्वया प्रागेव वर्णिता। . .नाभिराजश्च तत्रान्त्यो विश्वक्षत्रगणाग्रणीः ॥ ११॥ . इन श्लोकोंमेंसे श्लोक नं. ६ मंगलाचरणके बादका सबसे पहला. श्लोक है। इसीसे ग्रंथके कथनका प्रारंभ किया गया है । इस श्लोकमें . 'ततो' शब्द आया है जिसका अर्थ है '. उसके . अनन्तर'; परन्तु 'उसके किसके ? ऐसा इस ग्रंथसे कुछ भी मालूम नहीं होता । इस लिए 'यह श्लोक यहाँपर असम्बद्ध है । इसका ततो' शब्द बहुतही खटकता है। आदिपुराणके प्रथम पर्वमें इस श्लोकका नम्बर १९६ है । वहाँ पर इससे पहले कई श्लोकोंमें महापुराणके अवतारका-कथासम्बंधका-सिलसिलेवार कथन किया गया है । उसीके सम्बन्धमें यह श्लोक तथा इसके बादके दो श्लोक.नं. ७ और ८ थे। . अन्तके तीनों श्लोक (नं० ९-१०-११) आदिपुराणके १२ वें 'पर्वके हैं । उनका पहले तीनों श्लोकोंसे कुछ सम्बंध नहीं मिलता । श्लोक नं. ९ में 'अत्रान्तरे' ऐसा पदं इस बातको बतला रहा है कि गौतमस्वामी कुछ कथन कर रहे थे जिसके दरम्यानमें मुनियोंने उनसे कुछ सवाल किया है । वास्तवमै आदिपुराणमें ऐसा ही प्रसंग था। वहाँ ११ वें पर्वमें वज्रनाभिका सर्वार्थसिद्धिगमन वर्णन करके १२ वें पर्वके प्रथम श्लोकमें यह. प्रस्तावना की गई थी कि अब वज्रनाभिके स्वर्गसे पृथ्वी पर अवतार लेने आदिका वृत्तान्त सुनाया जाता है । उसके बाद दूसरे नम्बर पर फिर यह श्लोक नं. ९ दिया था । परन्तु • यहाँ पर वज्रनाभिके सर्वार्थसिद्धगमन आदिका वह कथन कुछ भी न 'लिखकर, एकदम १०-११ पर्व छोड़कर १२.३ पर्वके इस श्लोक नं० २ से प्रारंभ करके ऐसे कई श्लोक विना सोचे समझे नकल कर डाले हैं जिनका मेल पहले श्लोकोंके साथ नहीं मिलता । अन्तके ११ वें श्लोकमें त्वया प्रागेव वर्णिता' इस पदके द्वारा यह प्रगट किया गया है कि कुलकरोंकी उत्पत्तिका वर्णन इससे पहले दिया जा चुका
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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