SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिनसेन-त्रिवर्णाचार । वास्तवमें सोमसेनत्रिवर्णाचारमें ब्रह्मसूरित्रिवर्णाचार' से बहुत कुछ लिया गया है और जो कुछ उठाकर या परिवर्तित करके रक्खा गया है, वह सब जिनसेनत्रिवर्णाचारमें भी उसी क्रमसे मौजूद है। बल्कि' इस त्रिवर्णाचारमें कहीं कहीं पर सीधा ब्रह्मसूरित्रिवर्णाचारसे भी कुछ मजमून उठाकर रक्खा गया है, जो सामसेन त्रिवर्णाचारमें नहीं था; जैसा कि छठे पर्वमें 'यंत्रलेखनविधि' इत्यादि । परन्तु यह सब कुछ होते हुए भी जिनसेनत्रिवर्णाचारमें उपर्युक्त तीनों पद्योंको इस प्रकारसे बदल कर रक्खा है: " श्रीगौतमपिद्विजवंशरत्नं श्रीजैनमार्गप्रविबुद्धतत्त्वः । वाचं तु तस्यैव विलोक्य शास्त्रं कृतं विशेषान्मुनिजैनसेनैः ॥ (पर्व ४ श्लो० अन्तिम) कर्म प्रतीतिजननं गृहिणां यदुक्तं श्रीगौतमपिंगणविप्रकवीश्वरेण। सम्यक् तदेव विधिवत्मविलोक्य सूक्तं श्रीजैनसेनमुनिभिः शुभ मंत्र पूर्वम् । (पर्व ७ श्लो० अन्तिम) विवाहयुक्तिः कथिता समस्ता संक्षेपतः श्रावकधर्ममार्गात् । श्रीगौतमर्पिप्रथितं पुराणमालोक्य भट्टारकजैनसेनैः॥" (पर्व १५ श्लो. आन्तिम) इन तीनों पद्योंमें सोमसेनके स्थानमें 'जैनसेन'का परिवर्तन तो वही है, जिसका ज़िकर पहले आचुका है। इसके सिवाय 'श्रीब्रह्मसूरि के स्थानमें 'गौतमर्षि ' ऐसा विशेष परिवर्तन किया गया है। यह विशेष परिवर्तन क्यों किया गया और क्यों 'ब्रह्मसूरि ' का नाम उड़ाया गया है, इसके विचारका इस समय अवसर नहीं है। परन्तु ग्रंथकर्ताने इस परिवर्तनसे इतना ज़रूर सूचित किया है कि मैंने श्रीगौतमस्वामीके १ अवसर मिलने पर; इस ब्रह्मसूरि त्रिवर्णाचारकी परीक्षा भी एक स्वतंत्र + लेखद्वारा की जायगी। -लेखक । - -
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy