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________________ अन्य-परीक्षा। कुछ ढंग ही विलक्षण है। इसमें पहले तीन पद्योंमें तो मंगलाचरण किया । गया; चौथे पद्यमें ग्रंथका फल, लक्ष्मीकी प्राप्ति आदिबतलाते हुए ग्रंथको आशीर्वाद दिया गया; पांचवेंमें लक्ष्मीको चंचल कहनेवालोंकी निन्दा की गई; छठे सातवेमें लक्ष्मीकी महिमा और उसकी प्राप्तिकी प्रेरणा की गई; आठवें नौवेंमें (इतनी दूर आकर ) ग्रंथकी प्रतिज्ञा और उसका नाम दिया गया है; दसवेंमें यह बतलाया है कि इस ग्रंथमें जो कहीं कहीं (कहीं कहीं या प्रायः सर्वत्र ?) प्रवृत्तिमार्गका वर्णन किया गया है वह भी विवेकी द्वारा आदर किया हुआ निवृत्तिमार्गमें जा मिलता है; ग्यारहवें बारहवेंमें फिर ग्रंथका फल और एक बृहत् आशीर्वाद दिया गया है, इसके बाद ग्रंथका कथन शुरू किया है। इस प्रकारका अक्रम कथन पढ़ने में बहुत ही खटकता है और वह कदापि भगवत्कुंदकुंदका नहीं हो सकता । ऐसे और भी कथन इस ग्रंथमें पाये जाते हैं । अस्तु । इन . पद्योंमेंसें पाँचवा पद्य इस प्रकार है: चंचलत्वं कलंकं ये श्रियो ददति दुर्धियः। ते मुग्धाः स्वं न जानन्ति निर्विवेकमपुण्यकम् ॥५॥ अर्थात्-जो दुर्बुद्धि लक्ष्मीपर चंचलताका दोष लगाते हैं, वे मूढ यह नहीं जानते हैं कि हम खुद निर्विवेकी और पुण्यहीन हैं । भावार्थ, जो लक्ष्मीको चंचल बतलाते हैं वे दुर्बुद्धि, निर्विवेकी और पुण्यहीन हैं । पाठकगण ! क्या अध्यात्मरसके रसिक और अपने ग्रंथोंमें स्थान स्थानपर दूसरोंके शुद्धात्मस्वरूपकी प्राप्ति करनेका हार्दिक प्रयत्न करनेवाले महर्षिोंके ऐसे ही वचन होते हैं ? कदापि नहीं। भगवत्कुंदकुंद तो क्या, सभी आध्यात्मिक आचार्योने लक्ष्मीको 'चंचला'चपला' 'इन्द्रजालोपमा, ''क्षणभंगुरा,' इत्यादि विशेषणोंके साथ वर्णन किया है । नीतिकारोंने भी 'चलालक्ष्मीश्चलाः प्राणाः...' इत्यादि चाक्योंद्वारा ऐसा ही प्रतिपादन किया है और वास्तवमें लक्ष्मीका स्वरूप .
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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