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________________ कुन्दकुन्द - श्रावकाचार | 1 कलता है | इससे कहना होगा कि विवेकविलासमें दिये हुए दोनों उत्तरार्ध और पूर्वार्ध यहाँ छूट गये हैं और तभी यह असमंजसता प्राप्त हुई है । विवेकविलासके इसी उल्लाससंबंधी पद्य नं० ४२० और ४२१ के सम्बन्धमें भी ऐसी ही गढ़बड़ की गई है। पहले पद्मके पहले चरणको दूसरे पथके अन्तिम तीन चरणोंसे मिलाकर एक पद्य बना डाला है; बाकी पहले पयके तीन चरण और दूसरे पद्यका पहला चरण, ये सब छूट गये हैं | लेखकोंके प्रमादको छोड़कर, पयोंकी इस घटाबढीका कोई दूसरा विशेष कारण मालूम नहीं होता । प्रमादी लेखकों द्वारा इतने बड़े ग्रंथों में दस बीस पद्योंका छूट जाना तथा उलट फेर हो जाना कुछ भी बड़ी बात नहीं है । इसी लिए ऊपर यह कहा गया है कि ये दोनों ग्रंथ वास्त ८ में एक ही हैं। दोनों ग्रंथोंमें असली फर्क सिर्फ ग्रंथ और ग्रंथकर्ताके नामोंका है- विवेकविलासकी संधियोंमें ग्रंथका नाम ' विवेकविलास ' और ग्रंथकर्ताका नाम ' जिनदत्तसूरि' लिखा है । कुंदकुंदभावका - चाकी संधियोंमें ग्रंथका नाम श्रावकाचार' और ग्रंथकर्ताका नाम कुछ संधियोंमें 'श्रीजिनचंद्राचार्यके शिष्य कुन्दकुन्दस्वामी' और शेष संधियोंमें केवल ' कुन्दकुन्द स्वामी ' दर्ज है - इसी फ़र्कके कारण प्रथम उल्लासके दो पयोंमें इच्छापूर्वक परिवर्तन भी पाया जाता है। विवेकविलास में वे दोनों पय इस प्रकार हैं: " जीववत्प्रतिभा यस्य वचो मधुरिमांचितम् । देहं गेहं श्रियस्तं स्वं वंदे सूरिवरं गुरुम् ॥ ३ ॥ स्वस्थानस्यापि पुण्याय कुप्रवृत्तिनिवृत्तये | श्रीविवेक विलासाख्यो ग्रंथः प्रारभ्यते मितः ॥ ९ ॥ इन दोनों पयोंके स्थान कुंदकुंदश्रावकाचारमें ये पद्य दिये हैं:" जीववत्प्रतिभा यस्य वचो मधुरिमांचितम् । देहं गेहं श्रियस् स्वं वंदे जिनविधुं गुरुम् ॥ ३ ॥ ――― ३ ३३
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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