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________________ जिनसेन-त्रिवर्णाचार। एक स्थानपर त्रिवर्णाचारके इसी प्रकरणमें मोदक और 'विष्टरका पूजन करके और प्रत्येक मोदकादिक पर 'नमः पितृभ्यः' इस मंत्रके उच्चारण पूर्वक डोरी बाँधकर उन्हें पितरोंके लिए ब्राह्माणोंको देना लिखा है । और इस मोदकादिके प्रदानसे पितरोंकी अक्षय तृप्ति वर्णन की है और उनका स्वर्गवास होना लिखा है । यथाः "......मातृणां मातामहानां चाक्षया तृप्तिरस्तु ।" " अनेन मोदकप्रदानेन सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रस्वरूपाणां आचार्याणां तृप्तिरस्तु । स्वर्गे वासोऽस्तु ।" श्राद्धके अन्तमें आशीर्वाद देते हुए लिखा है कि:-- " आयुर्विपुलतां यातु कर्णे यातु महत् यशः ॥ प्रयच्छन्तु तथा राज्यं प्रीता नृणां पितामहाः ॥" अर्थात्-आयुकी वृद्धि हो, महत् यश फैले और मनुष्योंके पितरगण प्रसन्न होकर श्राद्ध करनेवालोंको राज्य देवें। इस कथनसे भी त्रिवर्णाचारमें श्राद्धद्वारा पितरोंका प्रसन्न होना प्रगट किया है। इस श्लोकका उत्तरार्ध और याज्ञवल्क्य स्मृतिमें दिये हुए श्राद्धप्रकरणके अन्तिम श्लोकका उत्तरार्ध दोनों एक हैं। सिर्फ 'प्रयच्छन्ति' की जगह यहाँ 'प्रयच्छन्तु' बनाया गया है। " (१) ॐ विश्वेभ्यो देवेभ्य इदमासनं स्वाहा (२) ॐ अमुकगोत्रेभ्यः पितापितामहप्रपितामहेभ्यः सपत्नीकेभ्य इदमासनं स्वधा (३) ॐ विश्वेदेवानामावाहयिष्ये (४) ॐ आवाहय (५) ॐ अग्नौकरणमहं करिष्ये (६) ॐ कुरुष्व (७) ॐ अग्नये कव्यवाहनाय स्वाहा (८) ॐ सोमाय पितृमते स्वाहा (९) आपोहीष्टा मयो भुवः (१०) ॐ पृथिवीते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखे अमृते अमृतं जुमोमि स्वाहा (११) तिलोसि सोमदेवत्यो गोसवो देवनिर्मितः । प्रत्नवद्भिः पक्तः स्वधया. पितृल्लोकान्युणार्हि नः स्वाहा॥" ११५
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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