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________________ ( ७८ ) सुत्त और विनय पिटक से क्या सम्बन्ध है, ये प्रश्न पालि साहित्य के विद्यार्थी के लिये बड़े महत्व के हैं। राजगृह की इस प्रथम संगीति का वर्णन, जिसमें धम्म और विनय का संगायन किया गया, इन ग्रन्थों में उपलब्ध होता है (१) विनय-पिटकचल्लबग्ग (२) दीपवंस (३) महावंस (४) बुद्धघोषकृत समन्तपासादिका (विनय-पिटक की अर्थकथा) की निदान-कथा (५) महाबोधिवंस (६) महावस्तु (७) तिब्बती दुल्व । इन सभी ग्रन्थों में छोटी-मोटी अनेक विभिन्नताएँ हैं। उदाहरणतः सभा के बुलाने के उद्देश्यों में ही कोई किसी बात पर जोर देता है और कोई किसी बात पर। 'चुल्लवग्ग' में सुभद्र वाले प्रकरण को ही प्रधानता देकर उसे सभा बुलाने का कारण दिखलाया गया है, जब कि 'दीपवंस' में इस प्रसंग का कोई उल्लेख नहीं है । 'महावंस' में कुछ अन्य साधारण कारण भी दिये हुए हैं। हम आसानी से देख सकते हैं कि ये ये कोई मौलिक विभिन्नताएँ नहीं हैं। इसी प्रकार सभा में भाग लेने वाले सदस्यों की संख्या के विषय में भी विभिन्न मत हैं। ऐसा होना भी बहुत सम्भव है । हम आसानी से इतना निश्चित तथ्य तो निकाल ही सकते हैं कि यह संख्या ५०० के लगभग थी। इसी प्रकार सम्मिलित सदस्यों में धम्म और विनय के स्वरूप के निश्चित करने में किसने कितना योग दिया, इसके विषय में भी उपर्युक्त ग्रन्थों में विभिन्न मत हैं। 'चुल्लवग्ग' के अनुसार तो सारा काम महाकाश्यप, आनन्द और उपालि ने ही किया। किन्तु 'दीपवंस' के वर्णन के अनुसार अन्य भिक्षुओं ने भी काफी योग दिया। इन अन्य भिक्षुओं में, अनिरुद्ध, वंगीश, पूर्ण, कात्यायन, कोट्टित आदि मुख्य थे। यहाँ भी कोई मौलिक भेद दिखाई नहीं पड़ता। प्रत्यक्षतः महाकाश्यप, आनन्द और उपालि के ही प्रधान भाग लेने पर भी अन्य अनक भिक्षुओं का भी उनके काम में पर्याप्त सहयोग हो सकता था। अतः उपर्युक्त ग्रन्थों के विवरणों में, जिनमें 'चुल्लवग्ग' का विवरण ही प्राचीन १. "उस महास्थविर (महा काश्यप) ने शास्ता (बुद्ध) के धर्म की चिरस्थिति की इच्छा से लोकनाथ, दशबल भगवान् के परिनिर्वाण के एक सप्ताह बाद, बूढ़े सुभद्र के दुर्भाषित वचन का, भगवान द्वारा चीवरदान तथा अपनी समता देने का, और सद्धर्म की स्थापना के लिये किये गये भगवान् (मुनि) के अनुग्रह का स्मरण कर के, सम्बुद्ध से अनुमत संगीति करने के लिये, नवान बुद्धोपदेश को धारण करने वाले, सर्वाङ्गयुक्त, आनन्द स्थविर के कारण पाँच सौ से एक कम महाक्षीणास्रव भिक्ष चुने" महावंस, पृष्ठ १२ (भदन्त आनन्द कौसल्यायन का अनुवाद)
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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