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________________ ( ६४ ) उत्पद्यते उप्पज्जति मुद्ग (मूंग) मुग्ग (२) ऊष्म+स्पर्श में, यथा आश्चर्य अच्छेर निष्क निक्ख, नेक्स यहाँ पर साथ-साथ प्राण-ध्वनि का आगमन भी हो गया है। (३) अन्तःस्थ+स्पर्श, या ऊष्म, या अनुनासिक व्यंजन में, यथा कर्क कक्क किल्बिष किब्बिस वल्क वाक कर्षक कस्सक कल्माष कम्मास (४) अनुनासिक+अनुनासिक में, यथा निम्न निन्न उन्मूलयति उम्मूलेति (५) +ल, या य, या व में, यथा दुर्लभ दुल्लभ आर्य अय्य (अरिय भी) उदीर्यते। उदिय्यति निर्याति निय्याति कुर्वन्ति कुब्बन्ति (आ) परवर्ती व्यंजन का लुप्त होकर पूर्ववर्ती व्यंजन का रूप धारण कर लेना(१) स्पर्श+ अनुनासिक में, यथा लग्न लग्ग अग्निः अग्गि उद्विग्न उब्बिग्ग स्वप्न सोप्प (२) स्पर्श+र याल् में, यथा
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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