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________________ ( ५६ ) विपरीत पूर्वी प्राकृतों में केवल एक तालव्य 'श्' रह गया है । अशोक के शिलालेखों में हम इस विकास-परम्परा के सभी रूप देखते हैं। इस प्रकार मगध के शिलालेखों में केवल दन्त्य स् पाया जाता है । गिरनार के शिलालेखों में स् और श् दोनों ही पाये जाते हैं। उत्तर-पच्छिम के शिलालेखों में तीनों ही श, ष और स् पाये जाते है। बोलियों के मिश्रण के कारण फिर भी इस सम्बन्ध में कोई नियम नहीं बाँधा जा सकता । यह परिवर्तन आदि और मध्य दोनों ही स्थितियों में दिखाई पड़ता है । सार्थवाह सत्थवाहो श्रवणीय सवनीय देशः देसो परशु फरसु खुज्ज पुरुष पुरिस (५) उपर्युक्त नियम (१) के अपवाद-स्वरूप निम्नलिखित तथ्य दृष्टिगोचर होते हैं, जो ध्यान देने योग्य है (अ) कहीं कहीं शब्द के आदि में पालि में प्राणध्वनि (ह.) का आगमन होता है। इसे यों भी कहा जा सकता है कि शब्द के आदि में अवस्थित संस्कृत अघोष अल्पप्राण व्यंजन (क , त्, प् आदि) पालि में उसी वर्ग के अघोष महाप्राण व्यंजन (ख्, थ्, फ् आदि) हो जाते हैं । उदाहरण कील खील कुब्ज.. कृत्वः खत्तु परशु (आ) कहीं कहीं, किन्तु अपेक्षाकृत कम संख्या में, उपर्युक्त नियम का विपर्यय भी देखा जाता है, अर्थात् संस्कृत अघोष महाप्राण व्यंजनों के स्थान पर पालि में उसी वर्ग के अघोष अल्पप्राण व्यंजन भी दिखाई पड़ते हैं। झल्लिका जल्लिका भगिनी बहिनी (बहिणी भी) (इ) वर्गों के उच्चारण-स्थान में परिवर्तन भी पालि में बहुत पाया जाता है। आदि और मध्य दोनों ही स्थितियों में यह होता है। शब्द के आदि में होने वाले कुछ परिवर्तनों के उदाहरण नीचे दिये जाते है। फरसु
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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