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________________ ( ६३८ ) अभिवम्मपिटक के कुछ उद्धरण अंकित हैं । वरमा में पालि-बौद्ध धर्म के विकास के इतिहास पर इस अभिलेख से पर्याप्त प्रकाश पड़ता है । मज़ा के बोबोगी पेगोडा में प्राप्त खंडित पाषाण-लेख वरमा में मब्ज़ा (प्राचीन प्रोम) के वोबोगी पेगोडा मे सन् १९१०-११ ई० में तीन खंडित पाषाण-लेख मिले, जो संभवतः छठी शताब्दी ईसवी के हैं । इनकी लिपि भी दक्षिण भारत की कन्नड़ -तेलगू लिपि से मिलती जुलती है । इन अभिलेखों में पालि-त्रिपिटक विशेषतः अभिधम्मपिटक के ही किसी ग्रन्थ का उद्धरण हैं, जिसका अभी निश्चयतः पता नहीं लगाया जा सका है । इस अभिलेख से बरमा को अभिवम्मपिटक संबंधी अध्ययन की ओर विशेष रुचि का जो वहाँ प्रारंभ से ही रही है, पता चलता है । १४४२ ई० का पेगन (बरमा का अभिलेख) बरमा के तद्विन नामक प्रान्त के प्रान्तपति वौद्ध उपासक और उसकी पत्नी ने १४४२ ई० में वहाँ के भिक्षु संघ को कुछ महत्वपूर्ण दान दिया था । उसी को स्मृति को सुरक्षित रखने के लिए यह लेख अंकित करवाया गया था । इस लेख में अन्य बातों के साथ साथ उन ग्रन्थों का भी उल्लेख है जिनका दान उक्त प्रान्तपति ने भिक्षु मंत्र को दिया था । अतः वरमा में पालि-साहित्य के विकास की दृष्टि मे इस अभिलेख का एक विशेष महत्व है । एक विशेष महत्वपूर्ण बात इस अभिलेख की यह भी है कि यहाँ पालि-ग्रन्थों की सूची में अमरकोश, वृत्तरत्नाकर जैसे कुछ संस्कृत ग्रन्थ भी सम्मिलित हैं, जो वरमा में तद्विषयक अध्ययन की परम्परा का अच्छा साक्ष्य देते हैं । पन्द्रहवी शताब्दी तक वरमी पालि साहित्य की प्रगति को दिखाने के लिए यद्यपि इस अभिलेख में निर्दिष्ट ग्रन्थों का अधिक विवेचन अपेक्षित है, किन्तु विस्तार भय से हम यहाँ ऐसा न कर केवल उनका नाम परिगणन मात्र ही करते हैं जिनकी भी संख्या २९५ है । यथा -- -(3) पराजिक कंड, (२) पाचित्तिय, (३) भिक्खुनी, विभंग, (८) विनय - महावग्ग. ९. विशेष विवेचन के लिए तो देखिए मेबिल बोड : दि पालि लिटरेचर ऑव बरमा, पृष्ठ १०१- १०९ ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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