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________________ ( ६२१ ) है। मैसूर के तोन लव शिलालेखों में अशोक ने अपने उपासक-जीवन का वर्णन किया है। यहाँ उसके उपासक स्वरूप की दो अवस्थाएँ उपलक्षित होती है। पहली अवस्था वह है जिसमें अशोक एक साधारण उपासक मात्र है। ‘य हकं उपासके' अर्थात् जब कि म उपासक था । दूसरी अवस्था वह है जिसमें अशोक संघ में जाने वाला (संघ उपयिते) उपासक बन गया है । अपनी इम अवस्था को सूचित करते हुए उसने कहा है 'यं मया संवे उपथिते' अर्थात् जब कि मैं संघ के दर्शनार्थ जाता था । अशोक के धर्म-विकाम को अन्तिम अवस्था वह है जब कि वह 'भिक्वगतिक' हो जाता है, अर्थात् स्वयं भिक्षु तो नहीं होता, किन्तु अनासक्त भाव में राज्यकार्य करता हुआ वह कभी कभी सत्संग पाने के लिये विहार में जाकर भिक्षुओं के साथ रहने लगता है। यहाँ अशोक पूर्ण गजपि-पद प्राप्त कर लेता है। चीनी यात्री इ-चिंग ने, जो सातवी गताब्दी में भारत में आया था, अशोक की एक मूर्ति भिक्षु-वेश में भी देखी थी। किन्तु यह सन्दिग्ध है कि अशोक अपने अन्तिम जीवन में भिक्षु हो गया था। कुछ भी हो, इसमें सन्देह नही कि बुद्ध, धम्म और संघ में अशोक की असीम निष्ठा थी। अपने राज्याभिषेक के इक्कीसवें वर्ष वह भगवान् बुद्धदेव की जन्मभूमि लुम्बिनीवन में गया और वहाँ एक मुन्दर, गोलाकार स्तम्भ पर उसने अकिंत करवाया " हिद बुधे जाते मक्यमुनीति . . . . . .हिद भगवा जातेति लुम्मिनिगामे' अर्थात् यहीं लुम्बिनी-ग्राम में शाक्यमुनि बुद्ध उत्पन्न हुए थे, यहीं भगवान् उत्पन्न हुए थे । अशोक की बुद्ध-निष्ठा का यह ज्वलन्त उदाहरण है। उसने कपिलवस्तु, सारनाथ, श्रावस्ती, गया आदि अन्य स्थानों की भी, जो बुद्ध की स्मृति में अंकित थे, यात्रा की और अपनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित की। पहले अशोक की पाकशाला में हजारों जीव प्रतिदिन मारे जाया करते थे। २ अपने प्रथम शिलालेख में उसने सूचना दी है कि इस समय सिर्फ दो मोर और एक हिरन ही मारे जाते हैं, जिनमें हिग्न का माग जाना निश्चित नहीं है और आगे १. देखिये राधाकुमुद मुकर्जी : मैन एंड थॉट इन एन्शियन्ट इंडिया, पृष्ठ १३० । २. पुलुवं महानसि देवानं पियस पियदसिने लाजिने अनुदिवसं बहूनि पान सत सहसानि आलभियिसु सुपठाये (पहले देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा की पाकशाला में अनेक शत-सहस्र प्राणी सूप के लिए मारे जाते थे) शिलालेख १ (जौगढ़) .
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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