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________________ ( ६१२ ) रक्खा जा सकता, किन्तु जो पालि व्याकरण के पूर्ण शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि मे महत्वपूर्ण है। यह साहित्य भी परिमाण में इतना अधिक है कि इसकी पूरी सुची तो आचार्य सुभूतिकृत 'नाममाला' या डेज़ॉयसां के केटेलांग' में ही देखी जा सकती है । यहाँ हम केवल कुछ महत्वपूर्ण ग्रन्थों का ही उल्लेख करेंगे। (१) बरमी भिक्षु सामगेर धम्मदस्सी-कृत वच्चवाचक' । चौदहवीं गताब्दी के अन्तिम भाग की रचना है। इसकी टीका १७६८ ई० में बरमी भिक्षु सद्धम्म-नन्दी ने की। (२) मंगलकृत 'गन्धट्टि', जिसका विषय उपसर्गों का विवेचन करना है । यह चौदहवीं शताब्दी की रचना है। (३) अरियवंस-कृत 'गन्धाभरण'। यह भी उपसर्गों का विवेचनपरक ग्रन्थ है । इसकी रचना १४३६ ई० में हुई।३ (४) विमत्त्यत्थप्पकरण--२७ श्लोकों की यह पुस्तिका विभक्तियों के प्रयोगों का विवेचन करती है । सुभूति के मतानुसार इसकी रचना बग्मी राजा क्यच्वा की पुत्री ने १४८१ ई० में की। इस पर बाद में 'विमत्त्यत्थ-टीका' या 'विमत्त्यत्थदीपनी' के नाम से एक टोका लिखी गई । सम्भवतः ये दो अलग अलग टोकाएँ भी हों। एक और टीका 'विभत्तिकथावण्णना' के नाम से भी इस रचना पर लिखी गई। (५) 'संवण्णनानयदीपना'--इस ग्रन्थ की रचना जम्बुधज (जम्बुध्वज) के द्वारा १६५१ ई० में की गई । इसी लेखक के दो अन्य ग्रन्य 'निरुति मंगह' और 'सर्वज्ञन्यायदीपनी' भी प्रसिद्ध है।५ . (६) सद्दवृत्ति (शब्दवृत्ति) जिसकी रचना चौदहवीं शताब्दी के सद्धम्म १. मोबिल बोड : पालि लिटरेचर ऑव बरमा, पृष्ठ २२ । २. मोबिल बोड : पालि लिटरेचर ऑव बरमा, पृष्ठ २६ । ३. मोबिल बोड : पालि लिटरेचर ऑव बरमा, पृष्ठ ४३ । ४. देखिये गायगर : पालि लिटरेचर ऐंड लेंग्वेज, पृष्ठ ५७ । ५. मोबिल बोड : पालि लिटरेचर ऑव बरमा, पृष्ठ ५५ ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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