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________________ ( ६०७ ) बताया है । 'सद्दविन्दु' पर 'लीनत्यसूदनी' नामक टीका आणविलास (ज्ञानविलास) नामक भिक्षु द्वारा १६ वीं शताब्दी के अन्तिम भाग में लिखी गई । (११) सोलहवीं शताब्दी के मध्यभाग में 'बालप्पबोधन' (बालप्रबोधन) नामक व्याकरण लिखा गया। इसके रचयिता का ठीक नाम पता नहीं है। (१२) 'अभिनवचुल्लनिरुत्ति' नामक व्याकरण में, जिसके रचयिता या रचना-काल के विषय में कुछ निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता, कच्चान व्याकरण के नियमों के अपवादों का विवरण है । (१३) सत्रहवीं शताब्दी के आदि भाग में बरमी भिक्ष महाविजितावी ने 'कच्चायनवण्णना' नामक व्याकरण-ग्रन्थ की रचना की । कच्चान-व्याकरण के सन्धिकप्प (सन्धि-कल्प) का यह विवेचन है। 'कच्चान-वण्णना' नामक एक प्राचीन ग्रन्थ भी है, जिससे इस अर्वाचीन रचना को भिन्न ही समझना चाहिए। महाविजितावी ने 'वाचकोपदेस' नामक एक और व्याकरण-ग्रन्थ की रचना की है जिसमें उन्होंने व्याकरण-शास्त्र का नैय्यायिक दृष्टि से विवेचन किया है । (१४) धातुमंजूसा--कच्चान-व्याकरण के अनुसार धातुओं की सूची इस ग्रन्थ में संगृहीत की गई है। इस ग्रन्थ के अन्त में लेखक ने अपना नाम स्थविर सीलवंस (शीलवंश) बताया है। यह एक पद्यबद्ध रचना है। सुभूति ने कहा है कि वोपदेव के कवि-कल्पद्रुम से इस ग्रन्थ में काफी सहायता ली गई है । फ्रैंक ने पाणिनीय धातुपाठ का भी इस ग्रन्त पर पर्याप्त प्रभाव दिखाया है ।। मोग्गल्लान-व्याकरण और उसका उपकार साहित्य ____ कच्चान-व्याकरण के समान मोग्गल्लान या मोग्गल्लायन५ व्याकरण पर भी प्रभूत सहायक साहित्य की रचना हुई है । सर्व-प्रथम 'मोग्गल्लान १. नाममाला, पृष्ठ ९१-९२ (भूमिका) २. सुभूति : नाममाला, पृष्ठ २३ (भूमिका) ३. देखिये नाममाला, पृष्ठ ९५ । ४. देखिये गायगर : पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ ५६ ! ५. पालि-व्याकरण की दृष्टि से कच्चान और कच्चायन, मोग्गल्लान और मोग्ग ल्लायन, इन शब्दों के ये दोनों रूप ही शुद्ध हैं।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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