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________________ ( ५९९ ) कही जा सकती । किन्तु आख्यानात्मक कला के पर्याप्त दर्शन इस मुन्दर रचना में होते हैं। नैतिक उपदेश की प्रधानता होते हुए भी अनेक कहानियाँ कलात्मक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण हुई है। कृतज्ञ पशु और अकृतज्ञ मनुष्य की कहानी तो निश्चय ही विश्व-माहित्य की एक संपत्ति है । जातक, अपदान, पालि अटठकथाएँ और महावंश की पृष्ठभूमि में लिखा हुआ यह ग्रन्थ निश्चय ही भारतीय आख्यान-साहित्य का एक महत्वपूर्ण रत्न है । कुछ कहानियों के देशकाल को भारत और कुछ को लंका में रखकर, सिंहली और पालि दोनों भाषाओं में विरचित यह ग्रन्थ उक्त दोनों देशों की अभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक एकता को एक सुन्दर कलात्मक रूप में उपस्थित करता है। खेद है कि इस ग्रन्थ का अभी कोई नागरो-संस्करण या हिन्दी अनुवाद प्रकाशित नहीं हुआ। दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंध और विशेषत: भारतीय साहित्य के सिंहली साहित्य पर प्रभाव के अध्ययन के लिए इस ग्रन्थ का पारायण अत्यंत आवश्यक है। बुद्धपूजा का तत्व इस ग्रन्थ की कुछ कहानियों में ध्वनित होता है, जो इस संबंधी महायानी प्रवृत्ति या भारतीय भक्तिवाद के प्रभाव का सूचक हो सकता है । 'रसवाहिनी' की एक 'रसवाहिनीगण्ठि' नामक पालि-टीका भी लिखी गई । सिंहली भाषा में इसका शब्दशः अनुवाद भी मिलता है । उस भाषा में इस विषय-संबंधी अन्य भी प्रभूत साहित्य है । बुद्धालङ्कार १५ वीं शताब्दी के आवा (बरमा)-निवासी शीलवंस (सीलवंस) नामक भिक्षु की रचना है। यह पद्यबद्ध है । निदान-कथा की मुमेध-कथा पर यह आधारित है । अन्य कुछ ध्यान देने योग्य विशेषता इसमें नहीं है। सहस्सवत्थुप्पकरण इस ग्रन्थ में एक हजार कहानियों का संग्रह है । संभवत: 'रसवाहिनी' का यही आधार था । कम से कम इन दोनों का संबंध तो स्पप्ट ही है। बरमा से ही इस ग्रन्थ का लंका में प्रचलन हुआ। किन्तु संभवतः यह मौलिक रूप में लंका में ही लिखा गया था। इस ग्रन्थ की 'सहस्सवत्थट्ठकथा' नामक १. मेबिल बोड : दि पालि लिटरेचर ऑव बरमा, पृष्ठ ४३ २. मललसेकर : दि पालि लिटरेचर ऑव सिलोन, पृष्ठ १२९
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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