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________________ ( ५९७ ) शेषतः ब्रह्माण्ड, मार्कडेय, पद्मपुराण आदि) के इस विषयक वर्णनों से कुछ भी विशेषता नहीं है। किसी युग में जब मनुष्य अधिक विश्वास करने की क्षमता रखता हो इन सब का चाहे भले ही उपयोग रहा हो, किन्तु आज तो ये सभी मननशील व्यक्तियों के लिए विरतिकर हो चुके हैं, इसमें सन्देह नहीं । स्वभावतः ‘पंचगतिदीपन' भी इसका अपवाद नहीं । प्रारंभ में ही कम से कम आठ प्रकार के नरकों का वर्णन किया गया है, यथा संजीव, कालसूत्र (कालसुत्त) संघात, रौरव, (रोरुव) महा रौरव (महारोरुव) तप, महातप और अवीचि। इनकी यातनाओं का वर्णन तो निश्चय ही रोमांचकारी है। केवल महत्वपूर्ण भाग वह है जहाँ नाना-प्रकार के पाप-कर्मों के परिणामस्वरूप वहाँ जाना दिखलाया गया है । इसके अलावा इस ग्रन्थ में अन्य कुछ ज्ञातव्य नहीं है । तुलनात्मक पौराणिक तत्व के विद्यार्थी के लिए पंचगतिदीपन' में प्रभूत सामग्री मिल सकती है, इसमें सन्देह नहीं । इसके रचयिता या उसके काल के संबंध में कुछ ज्ञात नहीं है। लोकप्पदीपसार या लोकदीपसार' ___इस ग्रन्थ की विषय-वस्तु ‘पञ्चगतिदीपन' के समान ही है । 'शासनवंस' के वर्णनानुसार यह चौदहवीं शताब्दी के बर्मी भिक्षु मेधंकर की रचना है, जिन्होंने अध्ययनार्थ सिंहल में प्रवास किया था । पाँच प्रकार की योनियों का वर्णन कग्ने के अतिरिक्त यहां आख्यानों के द्वारा उनमें निहित नैतिक उपदेशों को समझाया भी गया है । ‘महावंस' से इस ग्रन्थ में काफी सामग्री ली गई है । अन्य कुछ काव्यगत विशेषता इस ग्रन्थ की नहीं है। पालि आख्यानः रसवाहिनी३ उत्तरकालीन पालि-साहित्य में गद्य-पद्य मिश्रित कुछ आख्यानों की भी रचना १. देखिये मेबिल बोड:पालि लिटरेचर ऑव बरमा, पृष्ठ ३५ । २. मेबिल बोड:पालि लिटरेचर ऑव बरमा, पृष्ठ ३५ । ३. सिंहली लिपि में सरणतिस्स द्वारा दो भागों में सम्पादित, कोलम्बो १९०१ एवं १८९९; उसी लिपि में सिंहली व्याख्या सहित देवरक्खित द्वारा सम्पादित, कोलम्बो १९१७ ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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