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________________ ' ( ५९० ) यो एत्थ नन्दति नरो ससिगालभक्खे , कामं हि सोचति परत्थ स बालवुद्धि ॥गाथा ६९ (जो मूर्ख आदमी फोड़े के समान, विविध बीमारियों के घर, खून, पेशाब और पाखाना से भरे हुए, गीदड़ों के भक्ष्य, इस शरीर को देखकर आनन्दित होता है, वह अवश्य ही यहाँ से जाकर परलोक में दुःख पाता है)। उपर्युक्त गाथाएँ 'तेलकटाहगाथा' की काव्य-गत सुन्दरता का परिचय देने में अलं है । प्रथम बार पढ़ने पर ही उनमें भतृहरि के वैराग्य-सम्बन्धी पदों का सा निर्वेद प्रकाशित होने लगता है । भाषा और शैली की दृष्टि से इस तीसरी गाथा को देखिये सोपानमालं अमलं तिदसालयस्स संसारसागरसमुत्तरणाय सेतुं । सब्बागतीभय विवज्जितखेममग्गं, धम्म नमस्सथ सदा मुनिना पणीतं ।। मुनि (बुद्ध) द्वारा प्रणीत उस धर्म की वन्दना करो, जो स्वर्ग की विमल मोढ़ी के समान है, जो संसाररूपी सागर को तरने के लिये पुल के समान है और जो सम्पूर्ण आपत्तियों और भयों से रहित एवं कल्याण का मार्ग है । 'मोपानमालं अमलं' एवं 'संसारसागरसमुत्तरणाय' जैसे पदों में अनुप्रास की छटा तो देखने हो योग्य है, 'सब्बागतीभयविवज्जितखेममग्गं धम्म नमस्सथ मदा मुनिना पणीतं' तो बिलकुल संस्कृत श्लोक का अंश सा ही जान पड़ता है । संस्कृत का यह बढ़ता हुआ प्रभाव ‘तेलकटाहगाथा' की आपेक्षिक अर्वाचीनता का सूचक है। विटरनित्ज़ ने कहा है कि यह ग्रन्थ बारहवीं शताब्दी ईसवी से पूर्व की रचना नहीं हो सकता।' कम से कम ई० पू० तीसरी शताब्दी की रचना तो 'तेल कटाहगाथा' मानी ही नहीं जा सकती। फिर भी भाषा और शैली का साक्ष्य १. हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ २२३; गायगर ने इस ग्रंथ का वास्तविक रचना-काल अज्ञात मानते हुए तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी की रचनाओं में इसका उल्लेख किया है। देखिये उनका पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ ४६
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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