SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४२ ) उदाहरण अपेक्षा अपेखा, अपेक्खा भी उपेक्षा उपेखा, उपेक्खा भी विमोक्ष विमोख, विमोक्ख भी उपर्युक्त (३) और (४) ध्वनि-परिवर्तनों के आधार पर प्रसिद्ध जर्मन भाषातत्त्वविद् डा० गायगर ने एक नियम खोज निकाला है। इस नियम का नाम 'ह्रस्व मात्रा-काल का नियम' (दि लॉ ऑव मोरा) है। इस नियम के अनुसार पालि में प्रत्येक शब्दांश के प्रारम्भ में या तो (१) हस्व स्वर हो मकता है (एक ह्रस्व मात्रा-काल). या (२) दीर्घ स्वर हो सकता है (दो ह्रस्व मात्रा-काल),या (३) उसके अन्त में ह्रस्व स्वर हो सकता है (दो ह्रस्व मात्रा-काल)। इस प्रकार किमी भी शब्दांश में दो से अधिक ह्रस्व मात्रा काल नहीं हो सकते । दीर्घ सानुनासिक स्वर पालि में नहीं हो सकते। इस नियम के आधार पर ही उपर्युक्त (३)(४) ध्वनि-परिवर्तनों की सिद्धि डा० गायगार ने की है। इस नियम के अनुसार अन्य परिवर्तनों का भी उन्होंने उल्लेख किया है, जो इस प्रकार हैं--- (१) जहाँ संस्कृत में संयुक्त व्यंजन से पहले ह्रस्व स्वर होता है, वहाँ पालि में माधारण व्यंजन से पहले दीर्घ स्वर हो जाता है। उदाहरण मर्पप (सरसों) मम्मप के बजाय मासप वल्क (छाल) वक्क के बजाय वाक निर्याति (बाहर चला जाता है) नीयाति (२) जहाँ साधारण व्यंजन से पूर्व संस्कृत में दीर्घ स्वर होता है, वहाँ पालि में संयुक्त व्यंजन से पूर्व ह्रस्व स्वर होता है। उदाहरण आवृति अब्बति नीड निड्ड (नेड्ड भी) उदूखल उदुक्खल कूवर कुब्बर (३) जहाँ उपर्युक्त नियम (१) के अनुसार संस्कृत में संयुक्त व्यंजन से पहले (हस्व) स्वर होने पर पालि में उसका साधारण व्यंजन से पहले दीर्घ स्वर हो
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy