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________________ प्रकाशकीय श्री भरत सिंह उपाध्याय एम० ए० के इस ग्रन्थ 'पालि साहित्य का इतिहास - का प्रकाशकीय लिखना मैं अपने लिए विशेष महत्त्व की बात मानता हूँ। विद्वान लेखक बौद्ध और जैन साहित्य के पण्डित हैं। “बौद्ध-दर्शन और अन्य भारतीय दर्शन" पर इन्हें बंगाल हिन्दी मण्डल से १५०० ) का 'दर्शन' पारितोषिक मिल चुका है। पर यह ग्रन्थ अभी अप्रकाशित है। गंभीर साहित्य पर लिखने वाले हिन्दी में अभी बहुत कम हैं। जिन इने गिने व्यक्तियों का नाम उँगलियों पर गिना जा सकता है उनमें एक उपाध्याय जी हैं यह इनके इस प्रकाशित ग्रन्थ के आधार पर पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है। लेखक ने चार वर्षों के अध्यवसाय और र तपस्या से इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। संसार के प्राचीनतम उपलब्ध साहित्य को हिन्दी जनता के लिए सुगम बनाने का श्रेय लेखक को मिल कर रहेगा। इस ग्रन्थ का लाभ देश की दूसरी भाषाओं को भी मिलेगा। साहित्य के विद्यार्थी इमसे ईसा पूर्व के सामाजिक जीवन, भाव और विचार से परिचित होंगे। ___यह ग्रन्थ दस अध्याय और उनमें वर्णित वैज्ञानिक विभागों में पूरा हुआ है। > विषय-सूची को एक बार देख लेने पर सामान्य हिन्दी पाठक का बौद्धिक क्षितिज अनायास विस्तृत हो उठता है और ग्रन्थ के भीतर पैठने की जिज्ञासा जाग जाती है। हिन्दी साहित्य के विकास और उन्नयन के लिए संस्कृत की जानकारी जितनी आवश्यक है उतनी ही आवश्यक है पालि की जानकारी भी। संस्कृत का परिचय संस्कार और अभ्यास से शिक्षित वर्ग को थोड़ा बहुत मिलता रहा है पर पालि परिचय के लिए हिन्दी में अब तक के प्रकाशित ग्रन्थों में यह ग्रन्थ सर्वश्रेष्ठ है, यह कहने में हमें संकोच नहीं है। वौद्ध, जैन और ब्राह्मण दर्शनों में लेखक की रुचि और जिज्ञासा पाठक के भीतर दर्शन और साहित्य दोनों की रुचि जगा & देती है। पालि साहित्य में शाक्यमुनि के आचार-विचार, धर्म और संघ के विवरण के साथ इस देश का वह इतिहास जो ईसा-पूर्व और बाद की कई शताब्दियों का
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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